SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ REFE कबहुँ जाय नरक थिति भुंजे, छेदन भेदन भारी । कबहुँ पशु परजाय धरे तहँ, बध बन्धन भयकारी ।। सुरगति में परसम्पत्ति देखे, राग उदय दुःख होई। मानुषयोनि अनेक विपतिमय, सर्व सुखी नहिं कोई ।।५।। कोई इष्ट वियोगी विलखै, कोई अनिष्ट संयोगी। कोई दीन दरिद्री विगूचे, कोई तन के रोगी ।। किस ही घर कलिहारी नारी, कै बैरी सम भाई। किस ही के दुःख बाहिर दीखे,किस ही उर दुचिताई ।।६।। कोई पुत्र बिना नित झूरै, होय मरै तब रोवै । खोटी संततिसों दुःख उपजै, क्यों प्राणी सुख सौवे ।। पुण्यउदय जिनके तिनके भी, नाहिं सदा सुखसाता। यह जगवास जथारथ देखे, सब दीखे दुःखदाता ।।७।। जो संसार विषै सुख होता, तीर्थंकर क्यों त्यागै । काहे को शिव साधन करते, संजम सों अनुरागे ।। देह अपावन अथिर घिनावनी, यामें सार न कोई। सागर के जल सों शुचि कीजै तौ भी शुद्ध न होई।।८।। सप्त कुधातु भरी मल मूरत, चाम लपेटी सोहै। अन्तर देखत या सम जग में, अवर अपावन को है।। नवमल द्वार सवै निशिवासर, नाम लिये घिन आवै । व्याधि उपाधि अनेक विपतिमय, कौन सुधी सुखपावै ।।९।। 10 FESE FRE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy