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________________ BREFREE संबोधित कर कहा - "हे शतमति! क्या तुम्हें राजा महाबल का स्मरण आता है। मैं वही महाबल का जीव | श्रीधरदेव हूँ, इससमय तुझे प्रतिबोध देने स्वर्ग से आया हूँ। शतमति के भव में तूने महामिथ्यात्व का सेवन किया था। देख ! उसी मिथ्यात्वभाव का फल यह दुर्दान्त दुःख तेरे सामने है। इन घोर दुःखों से बचने के लिए हे भव्य ! अब तू मिथ्यामान्यता को छोड़ और सत्यधर्म अंगीकार कर ! अपने अनादि-अनन्त एवं | अनन्तगुणमय और चैतन्यमय आत्मतत्त्व को देख!" | श्रीधरदेव के उपदेश से उस शतमति के जीव ने अन्तर्मुख दृष्टि द्वारा शुद्ध सम्यग्दर्शन धारण कर मिथ्यात्व मल को धो डाला तथा श्रीधर का उपकार मानते हुए उसने कहा - "अहो! आपने नरक में आकर मुझे सत्यधर्म प्राप्त कराया - यह आपका महान उपकार है।" __कालान्तर में वह शतमति का जीव नरक से निकल कर पूर्वविदेह में महीधर चक्रवर्ती राजा का जयसेन नामक पुत्र हुआ। जयसेन के विवाहोत्सव के समय श्रीधर देव ने पुनः आकर संबोधित किया और उसे नरकों के दुःखों का स्मरण दिलाया। जयसेन को अपने पूर्वभव के नरकों के दुःखों का स्मरण आते ही वह संसार के भोगों से विरक्त हो गया और उसने यमधर मुनि के पास जाकर दीक्षा धारण कर ली। कठिन तपस्या करते हुए समाधिपूर्वक देह त्यागकर वह शतमति का जीव ब्रह्मस्वर्ग में देव हुआ। देखो! मिथ्यात्व और हिंसादि पापों के कारण कहाँ तो नारकी और कहाँ सम्यक्त्व के कारण इन्द्रपद? जीव अपने परिणामों और श्रद्धा के अनुसार ही विचित्रफल प्राप्त करता है। इसलिए उच्चपद के अभिलाषी जीवों को सदैव अहिंसक आचरण के साथ आत्मधर्म की आराधना करना चाहिए। तीर्थंकर ऋषभदेव का जीव श्रीधर देव की आयु पूर्ण होने पर अगले भव में विदेह क्षेत्र में जन्म लेगा | और मुनि होकर स्वर्ग जायेगा। तत्पश्चात् विदेह क्षेत्र की पुण्डरीकणी नगरी में तीर्थंकर का पुत्र होगा और वहाँ पहले चक्रवर्ती होकर फिर मुनि दीक्षा लेकर तीर्थंकर प्रकृति को बांधेगे । वहाँ से सर्वार्थसिद्धि में जायेंगे। || तत्पश्चात् अन्तिम दसवें भव में इस वर्तमान चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव होंगे। 000॥४ 5 "N irav oE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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