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________________ ६५ श ला का पु रु ष जो व्यक्ति पाँचों पापों में संलग्न है, शराब पीता है, धर्म के सही स्वरूप को न पहिचानकर मिथ्यामार्ग पर चलता है, क्रूर है, मांसाहारी है, रौद्रध्यानी है अर्थात् विषयों का सेवन करके एवं पाप कार्यों को करके प्रसन्न होता है, अति आरंभ करता और परीग्रह संग्रह में तत्पर रहता है - वह नियम से नरक गति में जाकर दिन-रात असह्य दु:ख का वेदन करता है। नरक सात हैं, जो एक के नीचे एक हैं। असंज्ञी (बिना मन वाले ) जीव प्रथम 'रत्नप्रभा' नरक में जाते हैं। पेट से सरकने वाले, गोह आदि दूसरे 'शर्कराप्रभा' नरक तक जाते हैं, पक्षी तीसरे 'बालुकाप्रभा' नरक तक जाते हैं। सर्प चौथे 'पंक' नरक तक जाते हैं, सिंह पाँचवें 'धूमप्रभा' नरक तक जाते हैं। स्त्री (नारी) छठवें 'तमप्रभा' तक और तीव्र पापी मनुष्य तथा मत्स्य (मच्छ) सातवें 'महातमप्रभा' तक जाते हैं । तीव्र पापोदय से उन नरकों में जाते ही अन्तर्मुहूर्त में दुर्गन्धित, घृणित, कुरूप और बेड़ौल आकार का शरीर प्राप्त हो जाता है। नरकों का कथन करते हुए जिनवाणी में कहा गया है कि - "तहाँ भूमि परसत दुःख इसो, बिच्छू सहस इसे नहीं तिसो । तहाँ राध श्रोणित वाहिनी, कृमि कुल कलित देह दाहिनी ।।९।। सेमर तरु दलजुत असिपत्र, असि ज्यों देह विदारें तत्र । मेरु समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय ।। १० ।। तिल-तिल करें देह के खण्ड, असुर भिड़ावें दुष्ट प्रचण्ड । सिन्धुनीर तें प्यास न जाय, तो पण एक न बूँद लहाय ।। ११ । । तीन लोक कौ नाज जु खाय, मिटै न भूख कणा न लहाय । ये दुःख बहु सागर लों सहै, करम जौग तें नरगति लहै ।।१२।। प्रथम चार नरकों में उष्ण वेदना है, पाँचवें नरक में उष्ण और शीत दोनों हैं। ऊपर के दो लाख बिलों में उष्ण, नीचे के एक लाख बिल में शीत वेदना है । छटवीं व सातवीं पृथ्वी में शीत वेदना की पराकाष्ठा है। १. छहढाला, प्रथम ढाल कविवर पण्डित दौलतरामजी आ व सर्ग
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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