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________________ । इसप्रकार ऋषभदेव के जीव ने भोगभूमि में अपने छठवें पूर्वभव में आर्य की पर्याय में सम्यक्त्व प्राप्त किया। आर्य साधुजनों से कृतार्थ होकर कहने लगा - "अहा! कैसा आश्चर्य है कि साधु पुरुषों का क्षण भर का समागम हृदय के संताप को दूर कर देता है। महापुरुषों का यह स्वभाव ही है कि वे मात्र अनुग्रह बुद्धि से भव्य जीवों को मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं। अहा! यह मेरा धन्यभाग्य है कि मुनिवर भगवन्त मुझ | पर अनुग्रह करके यहाँ पधारे। कहाँ वे निस्पृह साधु और कहाँ हम साधारण भोगभूमिया जीव । तप से जिनका शरीर कृश हो गया है - ऐसे वे दोनों तेजस्वी मुनि मानो अब भी मेरी दृष्टि के समक्ष खड़े हैं और मैं उनके चरण छू रहा हूँ और वे मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं। उन मुनिवरों ने मुझे धर्मामृत का रसपान कराया है, जिससे मेरा मन पूर्ण संतापरहित और प्रसन्न हो रहा है।" भगवान ऋषभदेव का जीव आर्य उन प्रीतिंकर मुनिराज के उपकार का पुन:-पुनः स्मरण करते हुए कहता है - "वे प्रीतिंकर मुनिराज वास्तव में प्रीतिंकर हैं, इसीलिए तो उन्होंने दूर देशान्तर से आकर और तत्त्वोपदेश देकर अपार प्रीति प्रदर्शित की है। वे मेरे महाबल के पूर्व भव में भी मेरे गुरुदेव थे। उनके चरणों में हमारी भक्ति बनी रहे। जिसप्रकार जहाज के बिना समुद्र नहीं तिरा जा सकता है, उसीप्रकार गुरु के उपदेश बिना संसाररूपी समुद्र नहीं तिरा जा सकता। श्रीगुरु के उपदेश से ही हम लोगों को विशुद्धि प्राप्त हुई है, अत: हम चाहते हैं कि जन्म-जन्मान्तरों में हमारी भक्ति गुरु के चरणों में बनी रहे।" इसप्रकार गुरुदेव के उपकार का चिन्तवन करते-करते आर्यदम्पत्ति की सम्यक्त्व भावना अत्यन्त दृढ़ हो गई। मुनिपुंगव प्रीतिंकर की देशना से सम्यक्त्व प्राप्त कर उन दोनों आर्य दम्पत्ति ने भोगभूमि की आयु पूर्ण | होने पर प्राण त्याग दिए और वे दोनों ईशान स्वर्ग में उत्पन्न हुए। 'शलाका पुरुष' के चरित्र नायक तीर्थंकर ऋषभदेव के छठवें पूर्वभव का जीव 'आर्य' अपनी भोगभूमि की आयु पूर्ण करके पाँचवें पूर्वभव में ईशान स्वर्ग में श्रीधर नामक देव हुआ और आर्या का जीव भी | सम्यग्दर्शन के प्रभाव से अपनी स्त्री पर्याय छेदकर उसी ईशान स्वर्ग में स्वयंप्रभ नामक देव हुआ। सिंह, ॥४
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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