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________________ BEF पुण्यात्मा वज्रजंघ ने रानी श्रीमती के साथ बड़ी भक्ति से उन मुनियों को हाथ जोड़कर अर्घ्य दिया और फिर | नमस्कार कर भोजनशाला में प्रवेश कराया, उच्चासन दिया, चरणों का प्रक्षालन किया, पूजा की, नवधाभक्तिपूर्वक आहार दिया। फलस्वरूप पंच आश्चर्य हुए। उस वन में सिंह, बन्दर, शूकर और नेवला जैसे पशु भी मुनिराज के आहारदान को देखकर हर्षित हुए और आहारदान की अनुमोदना की। वज्रजंघ | को कंचुकी के कहने से मालूम हुआ कि वे दमधर और सागरसेन मुनिराज वज्रजंघ के ही पुत्र हैं। आहार होने के बाद राजा वज्रजंघ श्रीमती के साथ उन मुनिराजों के पास गये और विनयपूर्वक इन चारों पशुओं के पूर्वभव पूछे। उनमें से दमधर मुनिराज ने उनके पूर्वभव कहे। "हे राजन्! यह सिंह आदि भविष्य में तुम्हारे पुत्र होकर मोक्ष प्राप्त करेंगे। यह सिंह पूर्वभव में हस्तिनापुर में एक व्यापारी का पुत्र था। तीव्र क्रोध के कारण मर कर सिंह हुआ है। यह शूकर पूर्वभव में एक राजपुत्र था; परन्तु मान कषाय के कारण मर कर शूकर हुआ। यह बन्दर पूर्वभव में वणिक पुत्र था जो तीव्र माया कषाय के कारण मरकर बन्दर हुआ है और यह नेवला एक हलवाई था। यह तीव्र लोभ के कारण मर कर नेवला हुआ है। ___ कषायों के कारण इनकी यह दुर्गति हुई है; अत: ये कषायें छोड़ने योग्य हैं। तत्त्वज्ञान के अभ्यास से जब पर-पदार्थ इष्ट-अनिष्ट भासित नहीं होते तो कषायें उत्पन्न ही नहीं होतीं; अत: सभी को स्वाध्याय का नियम लेकर प्रतिदिन तत्त्वाभ्यास अवश्य करना चाहिए। इससमय ये चारों सत्पात्र को दिए आहार दान की अनुमोदना कर हर्षित हुए हैं, इससे इन्हें अपने-अपने पूर्व भवों का जाति स्मरण तो हो ही गया है। जातिस्मरण होते ही ये चारों विषय-कषाय एवं सांसारिक भोगों से एकदम विरक्त भी हो गये हैं और निर्भय होकर धर्म श्रवण करने की इच्छा से यहाँ एकदम शान्त होकर बैठे हैं। हे राजन! तुम दोनों ने आहारदान के फलस्वरूप भोगभूमि का बन्ध किया है और इन सिंहादिक चारों जीवों ने भी तुम्हारे साथ ही भोगभूमि की आयु बांधी है। अब यहाँ से छठवें भव में जब तुम ऋषभदेव तीर्थंकर होकर मोक्ष प्राप्त करोगे तब ये चारों जीव भी उसी भव में मोक्ष जायेंगे। मोक्ष तक छहों भवों में भी ये तुम्हारे E" Fto, F50 | INE ३
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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