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________________ BREFF पर विशेष आसक्त था । इसप्रकार वज्रजंघ का समय श्रीमती के साथ बड़े आनन्दपूर्वक व्यतीत हो रहा था। एक दिन बड़ी विभूति के धारक तथा अनेक राजाओं से घिरे श्रीमती के पिता और वज्रजंघ के श्वसुर चक्रवर्ती महाराज वज्रदन्त सिंहासन पर सुख से बैठे थे। इतने में ही वनपाल ने एक नवीन खिला हुआ सुगन्धित कमल का फूल महाराज को अर्पित किया। राजा ने उसे सूंघने के लिए नाक के पास लाकर ज्यों ही सूंघना चाहा कि उन्हें उस कमल के फूल में सुगंध का लोभी भौंरा मरा हुआ दिखा। उस मृत भौरे को देख वे संसार के असारभूत सुखों से विरक्त हो गये। वे विचार करने लगे कि "अहो! || मदोन्मत्त भ्रमर फूल की सुगंध से आकर्षित होकर यहाँ आया था और रस पीते-पीते ही सूर्यास्त हो गया और यह इसी में बन्द होकर मर गया है। ऐसी विषयों की चाह को धिक्कार है। देखो! विषय सामग्री की तीन अवस्थाएँ होती हैं - दान, भोग और वियोग। जो आज धनाढ्य है, वही कल दरिद्र होते देखा जाता है। संयोग के बाद वियोग होता ही है और सम्पत्ति भी वस्तुत: विपत्ति का ही मूल है। इसप्रकार चक्रवर्ती वज्रदन्त ने विषय भोगों से विरक्त होकर अपने साम्राज्य का भार अमिततेज पुत्र को देना चाहा; परन्तु वह भी राज्य लेने को तैयार नहीं हुआ। उसका कहना था - __“जो समझ तुमरी सोइ समझ हमरी, फिर हम नृपति पद क्यों गहें ?" उसके तैयार न होने पर उन्होंने उसके छोटे भाइयों से कहा; परन्तु वे भी तैयार नहीं हुए। अमित के छोटे भाई ने कहा - हे पिता! जब आप इस राज्य को छोड़ना चाहते हैं तो मुझे भी नहीं चाहिए। मुझे भी यह राजपाट भारभूत लगता है। हे पूज्य ! मैं भी आप के साथ तपोवन को चलूँगा। जब किसी भी पुत्र ने राज्यपद स्वीकार नहीं किया, सभी ने साथ में दीक्षा लेने की भावना प्रगट की तो अन्ततोगत्वा चक्रवर्ती वज्रदन्त को अपने राज्य का उत्तरदायित्व अपने पोते, अमिततेज के पुत्र, पुण्डरीक hd 444444
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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