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________________ GEEP ६३|| की दिव्यध्वनि पशु-पक्षियों के अज्ञान अंधकार को नष्ट करने में भी समर्थ है। ॥ हे देव! आप के ऊपर लगे छत्र, ढुलते हुए चंवर, अष्ट प्रातिहार्य आदि की शोभा आपके कांतिमय शरीर से सहस्त्रगुणी हो जाती है।" इसप्रकार नाना भांति से श्रीमती और वज्रजंघ ने जिनमंदिर में जाकर जिनेन्द्र की पूजन स्तुति की। वज्रजंघ || का जीव तीर्थंकर ऋषभदेव के सातवें पूर्वभव का जीव है। यद्यपि यह वज्रजंघ विवाहोपरान्त सुसराल पक्ष के आग्रह पर दीर्घकाल तक अपनी पत्नी श्रीमती के साथ || चक्रवर्ती वज्रदंत के घर पर ही मेहमान के रूप में रहकर नानाप्रकार के मनचाहे भोगों को भोगता रहा; परन्तु उसे उन भोगों से संतोष नहीं हुआ। सो ठीक ही है भोगों से कभी किसी को संतोष नहीं होता। वस्तुत: हम भोगों को नहीं भोगते; बल्कि हमारे बहुमूल्य जीवन को ये भोग ही भोग लेते हैं अर्थात् भोगों का तो कोई अन्त नहीं होता, हमारा ही अन्त हो जाता है। ___ वज्रजंघ और श्रीमती ने अपने गुणों से समस्त पुरवासियों के मन को जीत लिया था। इसकारण उनकी विदाई पर वज्रदन्त चक्रवर्ती के समस्त पुरवासी अत्यन्त व्याकुल हो उठे। सो यह स्वाभाविक ही है। स्नेहियों की जुदाई से आकुलता तो होती ही है। वज्रजंघ अपनी पत्नी श्रीमती के साथ आगे-आगे और उन्हें लेने आये वज्रजंघ के पिता वज्रबाहु और उनकी पत्नी पीछे-पीछे चल रहे थे। पुरवासी, मंत्री, सेनापति तथा पुरोहित आदि जो भी उन्हें विदाई देने वाले साथ-साथ चल रहे थे, वज्रजंघ ने उन्हें थोड़ी ही दूर से वापिस कर दिया। हाथी, घोड़े, रथ और पैदल चल रही विशाल सेना का संचालन करता हुआ वज्रजंघ अपने उत्पल खेटक नगर में पहुँचा। उसके स्वागत में नगर खूब सजाया गया था। जब वज्रजंघ प्रिया श्रीमती के साथ नगर की प्रमुख गलियों से महल की ओर जा रहा था। तो नगर की नारियों ने मकानों की छतों पर से आशीर्वाद देते हुए अक्षत एवं पुष्पवर्षा की। नव दम्पत्ति ने राजभवन में प्रवेश किया। महा मनोहर राजभवन सर्व ऋतुओं E EFFoto F50 PE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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