SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ श ला का पु रु ष ३ भगवान ऋषभदेव का सातवाँ पूर्वभव ( राजा वज्रजंघ) जम्बूद्वीप के पूर्व दिशा के विदेह क्षेत्र में पुष्कलावती देश में उत्पलखेटक नगर का राजा वज्रवाहू था । उसकी वसुन्धरा नाम की रानी थी। वह ललितांग देव उसी वज्रवाहू के वज्रजंघ नामक पुत्र हुआ । यहाँ वज्रजंघ का समय सुख से व्यतीत हो रहा था । ललितांग देव का स्वर्ग से वज्रजंघ के रूप में मनुष्य लोक में आने पर स्वयंप्रभा महादेवी उसके वियोग में दु:खी हुई और भोगों में निस्पृह हो गई । आयु पूर्ण होने पर वह महादेवी समाधिपूर्वक प्राण त्याग कर चक्रवर्ती राजा वज्रदन्त की श्रीमती नाम की पुत्री हुई । राजा वज्रदंत की पुत्री श्रीमती एक दिन पिता के घर कुंवारी अवस्था में राजभवन में सो रही थी, उसी दिन उससे संबंधित एक घटना घटी, जिसका सीधा संबंध उसके पूर्वभव से था । वह इसप्रकार है - 1 राजा वज्रदंत के नगर उद्यान में श्री यशोधर मुनि विराजमान थे, उन्हें उसी दिन केवलज्ञान उत्पन्न हुआ था, इसलिए स्वर्ग से देव अपने वैभव के साथ पूजा करने के लिए आये । श्रीमती प्रातःकाल हर्षध्वनि सुनकर जाग उठी। देवों का आगमन देखकर उसे अपने पूर्वजन्म का स्मरण हो आया। अपने पूर्वभव के नियोगी ललितांग देव का स्मरण कर वह बार-बार मूर्छित हो रही थी । सखियों ने उसे आश्वस्त कर सचेत किया, | फिर भी वह नीची गर्दन किए बैठी रही। सखियों ने मूर्छा का कारण जानना चाहा; किन्तु श्रीमती ने अपनी | मनोभावना प्रगट नहीं की । घबड़ाई हुई सखियों ने श्रीमती के पिता वज्रदन्त से सब समाचार कहे । पिता स्नेहवश पुत्री श्रीमती के पास आये। तब भी वह मूर्च्छितवत् चुपचाप बैठी रही। तब उसके मन के अभिप्राय | को जाननेवाले पिता वज्रदन्त ने अपनी रानी लक्ष्मीमति से कहा - "यह तुम्हारी पुत्री पूर्ण यौवन अवस्था सा त वाँ 1540 10 5 5 10 15 र्व भ व रा व घ सर्ग
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy