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________________ | धाराप्रवाहीपना अथवा पर्यायों की निरन्तरता (नित्यता) द्रव्यार्थिकनय का विषय है और कालभेद अर्थात् | || पर्यायों का कालखण्ड पर्यायार्थिकनय का विषय बनता है। द्रव्यार्थिकनय का विषय ही दृष्टि का विषय है; क्योंकि द्रव्यार्थिकनय का विषय अभेद है और निर्विकल्पता का जनक है। पर्यायार्थिकनय का विषय भेद है और विकल्प का जनक है अत: दृष्टि का विषय | नहीं हो सकता। प्रवचनसार में जो सैंतालीस नय कहे हैं, उनमें विकल्पनय और अविकल्पनय में विकल्पनय का अर्थ भेद और अविकल्पनय का अर्थ अभेद ही है। गुण एवं पर्याय का स्वरूप - ध्यान रहे, जैसी नित्यता और अनित्यता में नित्यता द्रव्य व अनित्यता पर्याय है, वैसे नित्यत्व व अनित्यत्व जो आत्मा के धर्म हैं, उनमें द्रव्य व पर्याय का भेद नहीं है; क्योंकि वे दोनों गुण हैं, धर्म हैं, अतः उसमें कोई भी पर्याय नहीं है। इसीतरह सर्वज्ञता पर्याय और सर्वज्ञत्वशक्ति गुण है, सर्वदर्शीपना पर्याय है और सर्वदर्शित्व नाम की शक्ति (गुण) है। इनमें जो-जो पर्यायें हैं, वे दृष्टि के विषय में सम्मिलित नहीं हैं और सर्वज्ञत्व, सर्वदर्शित्व, नित्यत्व, अनित्यत्व आदि अभेदरूप से गुण (धर्म) हैं, वे दृष्टि के विषय में सम्मिलित हैं; क्योंकि ये सब गुण के ही रूपान्तर हैं। “अन्वयिनो गुणाः अथवा सहभुवा गुणा इति गुणलक्षणं । व्यतिरेकिणः पर्याया अथवा क्रमभुवा पर्याया इति पर्याय लक्षणम्।" 'यह वही-यह वही' यह अन्वय का लक्षण है । यह अन्वय अर्थात् साथ-साथ रहनेवाले गुण हैं, जो भिन्न हैं वे पर्यायें हैं, ये क्रमशः गुण व पर्याय के लक्षण हैं। अपने-अपने विशेष व सामान्य गुणों के साथ अभिन्नता होने से सभी द्रव्य गुणात्मक हैं। हम पर्याय के नाम पर गुणों को भी दृष्टि के विषय में से न हटा दें, इसलिए | गुण व पर्याय का स्वरूप जानना जरूरी है। Saali
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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