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________________ REFE | "सुनो, पर्याय शब्द का अर्थ सुनो ! जो-जो वस्तु पर्यायार्थिकनय का विषय बनती हैं, उन सभी की श | पर्याय संज्ञा है, चाहे वह द्रव्य हो, गुण हो या पर्याय हो । जैसे कि - जो भारत का नागरिक हो, वही भारतीय है। भले, वह हिन्दू हो, मुस्लिम हो, सिख हो या ईसाई हो; वैसे ही जो-जो पर्यायार्थिकनय के विषय हैं, | वे सब पर्यायें हैं। | देखो! सम्पूर्ण जिनवाणी नयों की भाषा में निबद्ध है और नयों के कथन में मुख्य-गौण की व्यवस्था | अनिवार्य होती है; क्योंकि वे अनन्त धर्मात्मक वस्तु का सापेक्ष कथन ही कर सकते हैं, वे प्रमाण की विषयभूत वस्तु के अनेक (अनन्त) धर्मों को एकसाथ नहीं कह सकते। अतः दृष्टि के विषय को समझने के लिए पहले हमें नयों की उन अपेक्षाओं को जानना होगा, जो हमें दृष्टि के विषय को अर्थात् सम्यक् श्रद्धा के श्रद्धेय को, निश्चयनय के विषयभूत ज्ञान के ज्ञेय को और परमध्यान के ध्येय को बताते हैं। ___ द्रव्य का स्वचतुष्टयस्वरूप : यहाँ ज्ञातव्य है कि - प्रत्येक वस्तु (छहों द्रव्य) अपने-अपने स्वचतुष्टयमय होती हैं। स्वचतुष्टय का अर्थ है वस्तु का स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल एवं स्वभाव । इन चारों सहित होने से ही द्रव्य को स्वचतुष्टयमय कहते हैं। वस्तु इन स्वचतुष्टयमय होने से ही सत् है। इस चतुष्टय में प्रत्येक के दो-दो भेद हैं - वस्तु का (अ) स्वद्रव्य-सामान्य-विशेषात्मक, (आ) स्वक्षेत्रअसंख्यातप्रदेशी-अखण्ड, (इ) स्वकाल-नित्यानित्यात्मक और (ई) स्वभाव-एकानेकात्मक । देखो! अपना आत्मा भी एक वस्तु है, द्रव्य है। इसके भी अपने स्वचतुष्टय हैं। सामान्य-विशेषात्मकता इसका द्रव्य है, असंख्यात प्रदेशी-अखण्ड इसका क्षेत्र है, नित्यानित्यात्मकता इसका काल है और एकानेकात्मकता इसका भाव है। ध्यान रहे, सम्पूर्ण चतुष्टयमय वस्तु का नाम भी द्रव्य है और इन चार चतुष्टय में एक द्रव्यांश का नाम भी द्रव्य है। यहाँ ध्यान देने योग्य विशेष बात यह है कि स्वक्षेत्र में असंख्यात प्रदेश क्षेत्र-ऐसा न कहकर || असंख्यातप्रदेशी कहा; क्योंकि असंख्यात प्रदेश कहने से तो असंख्यात का भेद खड़ा होता है और भेद ||२२
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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