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________________ Fret मध्याह्न में भरतेश ने घातिया कर्मों का नाश कर साथ के निकट भव्यों को दीक्षा दी। और आश्चर्य यह है कि शाम को भरत के भाई गणधर वृषभसेन ने भी घातिया कर्मों का क्षय करके कैवल्य की प्राप्ति कर ली और परमात्मा बन गये। | भरतेश की महिमा अपार है, वह अलौकिक विभूति है। जबतक संसार में रहे तबतक सम्राट के वैभव | से ही रहे, तपोवन में गये तो ध्यान साम्राज्य के अधिपति बने, वहाँ से भी कर्मों पर विजय पाकर मोक्ष साम्राज्य के अधिपति बने । उनका जीवन सातिशय पुण्यमय है। अत: मोक्ष साम्राज्य में अधीष्ठित होने के लिए उन्हें देरी नहीं लगी। उनकी सदा भावना रहती थी कि - "हे परमात्मन्! अनेक चिन्ताओं को छोड़कर मैं एक ही भावना भाता हूँ कि तुम सदैव मेरे मन्दिर मे विराजित रहो। हे सिद्धात्मन्! आप विचित्र सामर्थ्य से सहित हैं, मेरे लिए मुक्तिपथ के प्रदर्शक बने।" जिससमय भरतेश को कैवल्य की प्राप्ति हुई थी, उसीसमय उनके पाँच पुत्रों ने भी घातिया कर्मों को नष्ट कर केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया था। उन पाँचों का जन्म भी एकसाथ हुआ था। उनके नाम थे हंसमुनि, निरंजनसिद्धमुनि, महांशुमुनि, रत्नमुनि और संसुखिमुनि । श्रीमाला, वनमाला, मणिदेवी, हेमाजी और गुणमाला ये पाँच साध्वियाँ उन भरतपुत्रों की मातायें थीं। अत: उन्हें तो पुत्रों को कैवल्य प्राप्ति का हर्ष होना स्वाभाविक ही था, साथ रहनेवाली शेष साध्वियाँ भी हर्षित हुईं सबने उनकी खूब स्तुति की। भरतजी के पाँचों पुत्र केवलियों की भी गंधकुटी रची गई। मानवों एवं देवों ने उनकी अर्चना की। धरणेन्द्र भरतजी की स्तुति करते हुए कह रहा था - "कहाँ तो षट्खण्ड का भार ? कहाँ ९६ हजार रानियों का आनन्दपूर्ण खेल ? और कहाँ अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान प्राप्त करने की सामर्थ्य ! धन्य हैं वे जो || स्वयंबुद्ध हुए और शेष कर्मों का क्षय करके अमरपद प्राप्त कर लिया। FEFoR58 Rav_FE २१
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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