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________________ २१६॥ भरतेश कुमारों ने आगे कहा कि “बाहर के विषय को जानना व्यवहार है और अंतरंग विषय को अर्थात् || अपने आत्मा को जानना निश्चय है। आत्मा के पाँच इन्द्रियाँ नहीं हैं, वह सर्वांग से सुख का अनुभव करता है, पंचवर्ण उसे नहीं हैं। वह केवल उज्वल प्रकाशमय है। आत्मा के मन, वचन, शरीर, क्रोध-मान-मायालोभ, जन्म-मरण, रोग-बुढ़ापा आदि कोई भी नहीं हैं। ये सब शरीर के विकार हैं। भावकर्म, द्रव्यकर्म, | नोकर्म भी आत्मा नहीं, बल्कि आत्मा के विकारी भाव और संयोग हैं। आत्मतत्त्व को जाननेवाला आत्मा अन्तरात्मा है; अन्तरात्मा तीन तरह के हैं, उत्तम, मध्यम एवं जघन्य । इनके द्वारा जिस त्रिकाल शुद्ध आत्मा का ध्यान किया जाता है, वह कारणपरमात्मा है। अरहन्त एवं सिद्ध भगवान कार्य परमात्मा हैं। ‘आत्मा शुद्ध है' यह कथन निश्चय नयात्मक है। 'आत्मा कर्मबद्ध है' - यह कथन व्यवहार नयात्मक है। आत्मा के स्वरूप का कथन करते हुए, सुनते हुए वह बद्ध है और ध्यान के समय वह शुद्ध है। आत्मा को शुद्धस्वरूप से जानकर उसका ध्यान करने पर वह आत्मा कर्मों से मुक्त होकर शुद्ध होता है। आत्मा को सिद्धस्वरूप में देखनेवाले स्वत:सिद्ध होते हैं। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। स्फटिक की प्रतिमा के दर्शन से उसमें प्रतिबिम्बित स्वयं को देखकर ऐसा अनुभव करें कि 'मैं भी ऐसा ही हूँ' - ऐसा समझते हुए अपने आत्मा का ध्यान करे तो कारण परमात्मा सर्वांग में दिखता है। जिससमय आत्मा का दर्शन होता है, उस समय कर्म झरने लगते हैं एवं आत्मा में अनंतगुणों का विकास होने लगता है। धर्मध्यान व शुक्लध्यान में स्थूलरूप से तो मात्र इतना ही अन्तर है कि धर्मध्यान में आत्मा घड़े में रखे दूध के समान दिखता है और शुक्लध्यान में स्फटिक के बर्तन रखे दूध के समान निर्मल दिखता है। शुक्ल ध्यान में आत्मा अत्यंत निर्मल दिखता है। धर्मध्यान युवराज के समान है, जो पूर्ण स्वतंत्र नहीं है और शुक्लध्यान अधिराज के समान पूर्ण स्वतंत्र होता है। धर्मध्यान आत्मा के तत्त्व के अभ्यास काल में होता है, उस अवस्था में आत्मा मुक्त नहीं हो पाता। शुक्लध्यान को प्राप्त होने पर वह स्वतंत्र होकर मुक्ति साम्राज्य का अधिपति बन जाता है।" इसप्रकार कुमारों ने आत्मधर्म का वर्णन किया। FFFFFERFARE १८
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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