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________________ FEEP सुखावती की प्रशंसा करते हुए माता से उसका परिचय कराया। उन्होंने कहा - "मैं इस सुखावती के प्रभाव | से आप तक सकुशल आ सका हूँ।" सज्जनों का यह स्वभाव है कि वे कृत उपकार को कभी भूलते नहीं हैं।' श्रीपाल ने भी सुखावती के उपकार को बहुत बड़ा उपकार मानते हुए सुखावती के प्रति आभार व्यक्त किया। युवराज वसुपाल के प्रश्न के उत्तर में भगवान गुणपाल ने जो कुछ श्रीपाल के संबंध में कहा था तदनुसार | ही श्रीपाल ने विद्याधर राजाओं की श्रेणी में रहकर अनेक लाभ प्राप्त किये थे। | नगर में पहुँचने पर वसुपाल कुमार का वारिषेना आदि कन्याओं के साथ विवाहोत्सव हुआ। उसी समय श्रीपाल भी जयावती आदि चौरासी अभीष्ट कन्याओं से अलंकृत हुए। सुख से रहते हुए कुछ काल बाद राजा श्रीपाल की जयवती रानी से गुणपाल नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ और उसी समय आयुधशाला में चक्ररत्न प्रकट हुआ। तब राजा श्रीपाल ने बड़े हर्ष से जिन पूजा करके चक्ररत्न और पुत्ररत्न का महोत्सव मनाया। तदनन्तर चक्रवर्ती श्रीपाल ने छह खण्डों पर विजय प्राप्त करके चिरकाल तक चक्रवर्ती का वैभव भोगा। जब चक्रवर्ती श्रीपाल का पुत्र गुणपाल युवा हुआ तो उसका विवाह अपनी पत्नी जयावती के भाई जयवर्मा की पुत्री जयसेना से कर दिया। इसके सिवाय अनेक विद्याधर राजाओं की पुत्रियों से भी विवाह करा दिया। इसप्रकार गुणपाल अपनी अनेक पत्नियों के साथ सुख से समय व्यतीत कर रहा था। जिसका मोक्ष निकट है ऐसे गुणपाल की दृष्टि अकस्मात् चन्द्रग्रहण की ओर पड़ी, चन्द्रग्रहण को देखकर उसे ऐसा लगा कि जब राहु द्वारा ग्रसित इस चन्द्रमा की यह हालत हो रही है तो साधारण प्राणियों को पापोदय से प्राप्त प्रतिकूलता की तो बात ही क्या है ? इसप्रकार वैराग्य आते ही उन गुणपाल को जाति स्मरण हो गया। __उन्हें स्मरण हुआ कि 'मैं इस पुष्करार्ध द्वीप के पश्चिम विदेह में पद्म नामक देश में कान्तपुर नगर के राजा कनकरथ की रानी कनकप्रभा के कनकप्रभ नामक पुत्र हुआ। मेरा विवाह विद्युत्प्रभा से हुआ। एक दिन मेरी पत्नी की साँप द्वारा काटे जाने के कारण मृत्यु हो गई। उसके वियोग से विरक्त होकर मैंने समाधिगुप्त || १७ | FF - Fo_EEP FE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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