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________________ REFE कालान्तर में हम दोनों ने उस भव में अपने पुत्रों को राज्य सौंपकर मुनि एवं आर्यिका के व्रत ग्रहण कर लिए। एक बार मुनि हिरण्यवर्मा सात दिन का प्रतिमायोग धारण करके श्मशानभूमि में विराजे थे और मैं | (आर्यिका प्रभावती) भी अलग विद्यमान थी। | वहाँ भी वह भवदेव का जीव जन्म-मरण करते विद्युच्चोर के रूप में पहुँचा और उसे किसी के द्वारा | यह ज्ञात हो गया कि ये मुनि एवं आर्यिका सुकान्त और रतिवेगा के ही जीव हैं, जिन्होंने भवदेव के भव में मेरी होनेवाली पत्नी के साथ विवाह कर लिया था। बस, फिर क्या था, उस विद्युच्चोर ने हम दोनों (मुनिआर्यिका) को जलती चिता में फेंक दिया। वहाँ से समतापूर्वक मर कर पहले पूर्वभव में हम दोनों देव हुए। उधर राजा ने इस अपराध में विद्युच्चोर को फांसी की सजा दी। यह बात हमें देवभव में अवधिज्ञान से ज्ञात हो गई तो हमने राजा को किसी तरह शांत कर उस विधुच्चोर को बचा लिया, परन्तु बुरे भावों के फलस्वरूप मरकर वह नरक गया। ___कुछ काल बाद जब एकबार हम दोनों देवों ने पुन: वहाँ जाकर देखा तो उसी विद्युच्चोर का जीव महामुनि भीम के रूप में विराजमान था। देवों के भव में हम दोनों ने मुनि भीम की भक्तिभाव से वंदना की और मुनिश्री भीम से इस छोटी-सी उम्र में मुनि होने का कारण पूछा। ___मुनिश्री भीम ने बताया - "मैं एक दरिद्र कुल में जन्मा था। मेरा नाम माता-पिता ने भीम रखा। एकबार मैंने एक मुनिराज से उपदेश सुना । उसे सुनते ही मुझे जातिस्मरण हो गया, उससे मैंने जाना कि मैं अपने... पूर्व भव में रतिवर्मा सेठ का चरित्रहीन पुत्र भवदेव था; मेरी शादी रतिवेगा से होनेवाली थी; परन्तु समय पर वापिस नहीं आ सका तो मेरे कहे अनुसार ही उसकी शादी सुकान्त से हो गई। जब मैं लौटा और रतिवेगा को सुकांत के साथ देखा तो मैं उन दोनों का निष्कारण ही बैरी बन गया और मैंने पिछले चार पूर्व भव में उन्हें बारम्बार जान से मारा । फलस्वरूप मेरी दुर्गति हुई। भवदेव के बाद मैं बिलाव हुआ, तत्पश्चात् विधुच्चोर बना, फिर नरक में गया। नरक से आकर यहाँ भीम हुआ हूँ। इस भव में मेरी भली होनहार से मुझे वैराग्य हो गया और मैं साधु बन गया हूँ।" REFE 5 FOF NETE PF १७
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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