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________________ १९९ श ला वस्तुत: जाति विशेष में जन्म से कोई छोटा-बड़ा नहीं है। यहाँ राजा ऋषभदेव और चक्रवर्ती भरत के द्वारा जो चार वर्ण व्यवस्था कायम की गई, वह कर्म के आधार पर ही की गई थी। अतः जो जाति से अपने | को बड़ा या छोटा मानते हैं, वे भ्रम में हैं, वस्तुत: सदाचार और दुराचार के आधार पर ही ऊँच-नीच का व्यवहार उचित है। इसी दृष्टि से जो व्रती हैं, आत्मा को जानते हैं, आत्मा का उपदेश देते हैं, वे वणिक (वैश्य) होकर भी ब्राह्मण है और जो सात व्यसन का सेवन करते हैं, हिंसक कार्यों में प्रवृत्त रहते हैं, वे स्वयं निर्णय करें कि वे क्या हैं ? और उन्हें क्या बनना है ? का पु रु ष भ र किसी को शंका हो सकती है, पूछ सकता है कि - जो असि, मसि, कृषि, वाणिज्य और शिल्प | व सेवा आदि छह कर्मों से आजीविका करते हैं, उन गृहस्थों के भी हिंसा का दोष लगता है । वे क्या करें ? त उत्तर - जैनदर्शन में हिंसा को चार भागों में वर्गीकृत किया है - १. संकल्पी हिंसा, २. विरोधी हिंसा, जी ३. आरंभी हिंसा और ४. उद्योगी हिंसा । सामान्य अव्रती श्रावक मात्र संकल्पी हिंसा का ही संकल्पपूर्वक द्वा | त्याग कर सकता है। शेष तीन हिंसाओं से बचने की भावना होते हुए भी पूरी तरह उनसे बच नहीं पाता, परन्तु उनसे भी अधिक से अधिक बचने का प्रयास करता है। अतः वह ऐसे आरंभ एवं उद्योग नहीं प्र करता, जिनमें फल अल्प हो और जीवघात अधिक हो । जो काम क्रूरता के बिना संभव ही न हों, उन्हें जा भी नहीं करता । 55 रा इनसे बचने के शास्त्रों में ३ उपाय बताये हैं - १. पक्ष, २. चर्या, ३. साधन । इन तीनों में प्रथम उपाय समस्त प्राणियों से मैत्री, गुणी जनों के प्रति प्रमोद, दुखियों के प्रति कारुण्य और विरोधी जनों के प्रति र्मो माध्यस्थभाव रखकर हिंसादि पापों का त्याग करना 'पक्ष' कहलाता है। दूसरा उपाय - किसी देवता के लिए, किसी मंत्रसिद्धि के लिए अथवा किसी औषधि या भोजन के बनवाने के लिए मैं किसी की हिंसा नहीं करूँगा, ऐसी प्रतिज्ञा करना 'चर्या' कहलाती है। तीसरा उपाय- साधन को समझाते हुए कहा है कि आयु के अन्त समय में शरीर की समस्त प्रकार की चेष्टाओं का परित्याग कर ध्यान की शुद्धि से आत्मा को शुद्ध करना, 'साधन' कहलाता है । प दे श सर्ग P&
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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