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________________ (१९३ यहाँ विचारणीय बात यह है कि बाहुबली जैसे मुनिपुंगव, समकिती, तद्भव मोक्षगामी और अल्पकाल | में ही कैवल्य की प्राप्ति करनेवाले श्रुत मर्मज्ञ एवं संसार, शरीर, भोगों से विरक्त भेदविज्ञानी के मन में ऐसी स्थूल शल्य कैसे रह सकती है ? जिसकी अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान संबंधी तीन चौकड़ी का कषायें एवं तत्संबंधी नो कषायें कृश हो गईं हों, २८ मूलगुण निर्दोष पल रहे हों, जो छटवें-सातवें गुणस्थान पु में झूलनेवाले हों, जिसने साक्षात् तीर्थंकर केवली से दीक्षा ली हो और दुर्गम वन में एक वर्ष का योग धारण किया हो, उसके हृदय में ऐसी क्रोधाग्नि की ज्वाला कैसे जल सकती है कि 'मैं भरत की भूमि पर अन्नजल ग्रहण नहीं करूँगा ?' ये तो अनन्तानुबंधी कषाय और मिथ्यात्व की भूमिका जैसी स्थिति है। ऐसे तीव्र कषायवान को तीर्थंकर ऋषभदेव मुनिदीक्षा का पात्र कैसे मान सकते थे । अत: योगिराज बाहुबली के बारे | में यह कहना मुझे उचित प्रतीत नहीं होता । अब अ ला च अरे! बाहुबली ने तो घर छोड़ने के पहले ही भरतजी से क्षमा-याचना कर अपनी भूल स्वीकार कर ली | थी और भरतजी ने भी बाहुबली से घर पर ही रहने का आग्रह कर अपना हृदय उनके सामने खोलकर रख दिया था । बाहुबली घर से नाराज होकर नहीं, बल्कि विरक्त होकर दीक्षा लेने गये थे। वे पक्के भावलिंगी | संत थे और भव का अंत करने के लिए ही गृहत्याग किया था । अन्तरंग पुरुषार्थ की कमी एवं स्वकाल तथा क्र वस्तुत: आगम की बात यह है कि “जब उन्हें केवलज्ञान होने की होनहार ही नहीं थी और काललब्धि भी नहीं आई थी, तब केवलज्ञान कैसे हो सकता था? उनके उस समय केवलज्ञान होने का स्वकाल ही र्ती | नहीं था और तत्समय की उपादानगत योग्यता भी नहीं थी, इसकारण केवलज्ञान नहीं " भ हुआ र त क्या यह कारण पर्याप्त नहीं है ? जबकि प्रत्येक कार्य स्वचतुष्टय एवं पाँच समवाय पूर्वक ही होता है, | यदि यह सिद्धान्त सही है तो बाहुबली जैसे त्यागी, तपस्वी, आत्मज्ञानी और श्रुतज्ञ - तद्भवमोक्षगामी | व्यक्ति को कषायवाला और शल्यवाला बताकर कवि रत्नाकर क्या सिद्ध करना चाहते थे, कुछ समझ में नहीं आया ? जी to व का वै भ व सर्ग १५
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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