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________________ 8REP जिसप्रकार मेघ से निकलती हुई गर्जना संतप्त मनुष्यों को आनंदित कर देती है, उसीप्रकार बाहुबली के | मुख से निकलते हुए वचनों ने चक्रवर्ती भरत के संतप्त मन के आनन्दित तो कर दिया, परन्तु भरत को बाहुबली का राजपाट छोड़कर वनवासी होना प्रिय नहीं लगा। अत: उन्होंने खेद प्रगट करते हुए कहा - "मैंने तुमसे संघर्ष करके अच्छा नहीं किया। तुम सुख से राज्य करो, पिताश्री द्वारा दिए राज्य में मैंने हस्तक्षेप किया, | इसका मुझे दुःख है; पर मैं भी क्या करूँ ? मैं भी कर्माधीन होकर क्रोधावेश में आ गया था। जबतक मैं तुमको अपने अधीन नहीं करता, तबतक चक्ररत्न आयुधशाला में प्रवेश नहीं करता । चक्रवर्ती के नाते छहखण्ड जीतना मेरी मजबूरी थी; अन्यथा मैं तुम जैसे महान व्यक्तित्व के धनी भाई से विद्रोह की भाषा में बात ही क्यों करता? क्या मैं तुम्हारे अन्तर्बाह्य व्यक्तित्व से परिचित नहीं हूँ ? यदि मेरी जगह पर तुम होते तो संभवत: तुम्हें भी यही करना पड़ता। अब तुम सब विकल्प छोड़कर पोदनपुर का राज्य संभालो और गृहस्थावस्था में ही रहकर गौरव से धर्म की साधना और अपने आत्मा की आराधना करो।" । बाहुबली ने दृढ़ संकल्प कर लिया था कि अब वे राज्यसत्ता से ममत्व तोड़कर एवं जैनेश्वरी दीक्षा लेकर आत्मसाधना द्वारा परमात्मपद प्राप्त करने का अर्न्तमुखी पुरुषार्थ करेंगे। बस, उनका यही सोच वैराग्य में बदल गया और वे अपने पुत्र महाबली को राज्यसत्ता सौंप कर स्वयं दीक्षित होकर वनवासी बन गये । पोदनपुर भरत के अधीन हो गया और चक्ररत्न ने छहखण्ड पर अखण्डरूप से विजय प्राप्त कर दिग्विजय का मंगल महोत्सव मनाया। ००० F_ncy | E FEE १४
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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