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________________ REE FRE F F १७७|| शरीरी हैं, इसकारण इनकी तो कुछ शारीरिक क्षति होगी नहीं और इनकी कषायों के निमित्त से दोनों ओर की सेना व्यर्थ में मारी जायेगी। इसप्रकार निश्चय कर मंत्रियों ने भरत-बाहुबली दोनों राजाओं से निवेदन | करते हुए विनम्रता से कहा - "बिना कारण मनुष्यों का संहार करनेवाले इस युद्ध से कोई लाभ नहीं है; बल्कि अपयश ही होगा; बल के उत्कर्ष की परीक्षा अन्यप्रकार से भी हो सकती है। इसलिए आप दोनों || भाइयों के परस्पर तीन युद्ध हों। इन युद्धों में जिसकी पराजय हो उसे किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया प्रगट किए बिना सहज ही अपनी पराजय स्वीकार कर लेना चाहिए। और जिसकी विजय हो वह भी अहंकार के बिना सहज रहकर पराजित भाई को ससम्मान हृदय से लगाये।" इसप्रकार जब समस्त राजाओं ने और मंत्रियों ने बड़े आग्रह के साथ उक्त प्रस्ताव रखा तो बड़ी कठिनता से तैयार हुए उन दोनों भाइयों ने मंत्रियों का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जो इसप्रकार था - "दोनों भाइयों के बीच जलयुद्ध, दृष्टियुद्ध और बाहुयुद्ध अर्थात् मल्लयुद्ध - ये तीन युद्ध हों; इनमें जो विजय प्राप्त करेगा, वही विजयश्री का स्वामी होगा।" इसप्रकार सबको आनन्द देनेवाली घोषणा कर मंत्री लोगों ने सेना के प्रमुख पुरुषों को एक जगह एकत्रित किया। जो महाराजा भरत के पक्षवाले राजा थे, उन्हें एक ओर बैठाया और जो बाहुबली के पक्ष के थे, उन्हें दूसरी ओर बैठाया। उन सब राजाओं के बीच में बैठे हुए भरत और बाहुबली ऐसे सुशोभित हो रहे थे मानो निषध और नीलपर्वत ही पास-पास आ गये हों। उन दोनों में बाहुबली नीलमणी के समान सुन्दर छवि के धारक थे और भरत तपाये स्वर्ण के समान कान्ति के धारक सुमेरु पर्वत के समान सुशोभित हो रहे थे। ___अत्यन्त धीर तथा पलकों के संचार रहित शान्त दृष्टि को धारण करते हुए राजा बाहुबली ने दृष्टियुद्ध में बहुत शीघ्र भरतेश पर विजय प्राप्त कर ली। तत्पश्चात् मदोन्मत्त दिग्गजों के समान स्वाभिमान से उद्धत हुए वे दोनों भाई जलयुद्ध करने के लिए सरोवर के जल में प्रविष्ट हुए और अपनी लम्बी-लम्बी भुजाओं से एक-दूसरे पर पानी उछालने लगे। चक्रवर्ती भरत के वक्षस्थल पर बाहुबल के द्वारा जल की उज्वल छटायें ऐसी सुशोभित हो रही थीं मानो सुमेरु पर्वत के मध्य भाग में जल का प्रवाह पड़ रहा हो । परस्पर एक-दूसरे ॥ १४ _ney |E thwYE |
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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