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________________ PREFE १५९|| बुद्धिसागर मंत्री के समयोचित निवेदन पर राजा को बड़ा हर्ष हुआ। मंत्री के कर्तव्यपालन के प्रति प्रसन्न होकर भरतेश ने बुद्धिसागर को अनेक वस्त्र व आभूषण भेंट में दिये और यह भी आज्ञा दी कि दिग्विजय प्रयाण की तैयारी करो। सब लोगों को इसकी सूचना दो। बुद्धिसागर ने प्रार्थना की कि "स्वामिन् ! नौ दिन तक जिनेन्द्र भगवन्त की पूजा वगैरह बड़े उत्साह के साथ कराकर दशमी के रोज यहाँ से प्रस्थान का प्रबन्ध करूँगा।" बुद्धिसागर मंत्री की आज्ञा से अयोध्यानगरी के जिनमन्दिरों की एवं नगर की सजावट होने लगी। सब जगह अब दिग्विजय प्रयाण की चर्चा चल रही थी। मन्दिरों की ध्वजा पताकाएँ आकाश प्रदेश को चुंबन कर रही थीं। इसकारण उस नगर का साकेतपुर नाम सार्थक बन गया। ___अयोध्यानगरी के बड़े-बड़े राजमार्ग अत्यन्त स्वच्छ किए गये एवं सुगंधित गुलाबजल छिड़काव होने से सर्वत्र सुगंध ही सुगंध फैल गई थी। अयोध्यानगरी में अगणित जिनमन्दिर थे, उनमें कहीं पूजा चल रही थी। कहीं मुनिराजों को आहारदान दिया जा रहा था। इसप्रकार वह पुण्यनगर बन गया था। नित्य ही अनेक धर्मप्रभावना के कार्य व नित्य ही रथयात्रा महोत्सव, महाभिषेक, पूजा आदि कार्य बुद्धिसागर मंत्री की प्रेरणा से हो रहे थे। भरतेश बीच के सिंहासन पर विराजे हुए थे। इधर-उधर पुरोहित, मंत्री, सेनापति, सामन्त वगैरह बैठे हुए थे। सामने अगणित प्रजा बैठी हुई थी। इनके बीच में अनेक विद्वान कवि, गायक वगैरह भी उपस्थित थे। सब अपनी-अपनी कला प्रदर्शित कर रहे थे। दिग्विजय को प्रस्थान करने का अब कुछ ही समय अवशेष था। इतने में एक सुंदर व दीर्घकाय भद्रपुरुष ने दरबार में पदार्पण किया। सबसे पहले चक्रवर्ती के सामने कुछ भेंट समर्पण कर उसने साष्टांग प्रणाम किया। भरतेश ने भी उसे योग्य स्थान में बैठने के लिए अनुमति दी। FFF455 सर्ग १३
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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