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________________ प्रश्न यह है कि उन ऋषभदेव से लेकर महावीर स्वामी तक किसी भी तीर्थंकर का समवसरण कदाचित् || आज हमारे युग में होता तो क्या हम भी ७ घंटे १२ मिनिट का समय प्रतिदिन निकाल लेते? आप भावावेश में तो कदाचित् कह देंगे-क्यों नहीं? मिले तो ऐसे तीर्थंकर! हम तो अपना पूरा जीवन समर्पित कर देंगे। परन्तु वस्तुत: आप कुछ भी नहीं कर पायेंगे, क्योंकि यदि कुछ करना ही होता तो भले साक्षात् तीर्थंकर न सही, उनकी वाणी तो वही है, फिर यहाँ अपना जीवन समर्पित क्यों नहीं करते ? । अरे! ऐसे अवसर भी हम और आप सब अनन्तबार खो चुके हैं जब साक्षात् अरहंत हमारे सामने थे। हम उनके समोसरण में भी अनेक बार जाकर खाली हाथ लौटे हैं, अत: इन बातों में कोई सार नहीं। ऐसा मत करो कि - 'न नौ मन तैल होगा और न राधा नाचेगी।' आज यहाँ न समवसरण होगा न हम समय निकालेंगे। यदि कल्याण करना हो तो न सही प्रतिदिन सात घंटा और १२ मिनट - प्रतिदिन सुबह-शाम १-१ घंटा जिनवाणी की शरण में रहें तो भी इस कलिकाल में हमें कल्याण का मार्ग मिल सकता है। ___ यह तो हमारा परम सौभाग्य है कि इस निकृष्ट काल में भी जिनवाणी की यह उत्कृष्ट बात सुनने को मिल रही है। भाई! इसकी उपेक्षा मत करो, इसे अत्यन्त प्रीतिपूर्वक सुनेंगे तो हमारा कल्याण हो जायेगा। कहा भी है - "तत्प्रति प्रीति चित्तेन येन वार्ता पि हि श्रुतः। निश्चितं सभवेद्भव्यो, भावीनिर्वाण भाजनः ।। जिन्होंने निज आत्मा की बात भी प्रीतिचित्त से सुनी, वे निश्चित ही भव्य हैं और शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त करेंगे।" अत: जहाँ से भी दिव्यध्वनि का सार सुनने को मिले, वहाँ से ही प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। जिसप्रकार साक्षात् जिनेन्द्र के दर्शन न मिलने पर हम उनकी मूर्ति के दर्शन से ही उनकी पूर्ति कर लेते हैं, || वैसे ही साक्षात् दिव्यध्वनि के अभाव में उसी परम्परा से प्राप्त जिनवाणी से लाभ लेना ही एकमात्र उपाय है। 18 a ,
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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