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________________ सहित पादप्रक्षालन करके अर्घ्य चढ़ाकर पूजा की तथा प्रदक्षिणा दी। मुनिराज का रूप देखते ही राजा || श्रेयांस को जातिस्मरण ज्ञान हुआ और पूर्व भव के संस्कार के कारण मुनिराज को आहारदान देने की विधि ज्ञात हो गई। व्रजजंघ और श्रीमती के पूर्व भव का सारा वृतान्त उन्हें स्मरण हो आया। उस भव में श्रीमती ने सरोवर के किनारे दो मुनियों को आहारदान दिया था। जो उन्हीं के पुत्र थे। वह सब याद आ गया। | बस, फिर क्या था । राजा श्रेयांस ने ऋषभ मुनिराज को अत्यन्त भक्तिभाव से इक्षुरस का आहारदान किया। इसप्रकार मुनि ऋषभ को सर्वप्रथम आहारदान देकर उन्होंने इस चौबीसी में आहारदान की प्रवृत्ति चलाई, दानतीर्थ का प्रवर्तन किया। उन्होंने नवधा भक्तिपूर्वक और श्रद्धा आदि सात गुणों सहित दान दिया। ऋषभ मुनिराज खड़े-खड़े अपने करपात्र में इच्क्षुरस का आहार ले रहे थे, वह दिन वैशाख शुक्ला तीज का था, जो आज भी अक्षय तृतीया के नाम से प्रचलित है। आहारदान की खुशी में उस समय देवगण आकाश मार्ग से पंचाश्चर्य सहित पुष्पवृष्टि कर अनुमोदना कर रहे थे। मुनिराज ऋषभदेव को प्रथम पारणा कराने से राजा श्रेयांस का यश सारे जगत में फैल गया। आहारदान | की क्रिया जानकर चक्रवर्ती भरत आदि को महान आश्चर्य हुआ। वे सोचने लगे 'मौन धारण किए हुए मुनिराज का अभिप्राय उन्होंने कैसे जान लिया ? देवों को भी बड़ा आश्चर्य हुआ और आनन्दित होकर उन्होंने राजा श्रेयांस का सम्मान किया। महाराज भरत ने भी अयोध्या से हस्तिनापुर आकर राजा श्रेयांस का सम्मान किया और अति हर्ष व्यक्त करते हुए पूछा - "हे महादानपति! यह तो बताइए कि मुनिराज के मन की बात आपने कैसे जान ली? इस भरतक्षेत्र में पहले कभी नहीं देखी गई यह दान की विधि आदि आपने न बतलाई होती तो कौन जान पाता ? हे कुरुराज! आज आप हमारे लिए गुरु समान पूज्य बने हैं। आप दानतीर्थ के प्रवर्तक हैं, महापुण्यवान हैं, इस दान की पूरी बात हमें बतलाइए।" राजा श्रेयांस ने बताया - “यह सब मैंने पूर्वभव के स्मरण से जाना है, जब मुनिराज के सर्वप्रथम दर्शन किए तो उनका उत्कृष्टरूप देखकर मुझे जातिस्मरण ज्ञान हो गया और मैंने मुनिराज का अभिप्राय जान लिया। पूर्व के आठवें भव में जब ऋषभ मुनिराज राजा वज्रजंघ थे तब मैं उनकी श्रीमती नाम की रानी था। तब | REE ९ तब
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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