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________________ १०१॥ राजा नाभिराज के मुख से स्वप्न के फल सुनकर मरुदेवी हर्षित हुई। अहमिन्द्र को स्वर्ग से माता मरुदेवी | के गर्भ में आते ही इन्द्रलोक में घण्टों के नाद आदि अनेक मंगल चिह्न प्रगट हुए। उनसे भगवान के गर्भकल्याणक का प्रसंग जानकर सौधर्म इन्द्रादि देव वहाँ आये और अयोध्या नगरी की प्रदक्षिणा करके माता-पिता को नमस्कार किया। सौधर्म इन्द्र दिक्कुमारी आदि देवियों को माता मरुदेवी की सेवा में लगाकर वापस चले गये। वे देवियाँ माता की प्रशंसा करते हुए कहती थीं कि "हे माता! आपके गर्भस्थ पुत्र द्वारा जगत का संताप नष्ट होगा, इसलिए आप जगत का पालन करनेवाली जगत माता हो। हे माता! आपका पुत्र जगत विजेता, सर्वज्ञ, तीर्थंकर और कृतकृत्य होकर शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त करेगा।" वे देवियाँ आनन्द सहित माता के साथ अनेकप्रकार से तत्त्वचर्चा करती थीं। माता उन्हें मधुरभाषा में उत्तर देती थीं। माता से किए गये कुछ प्रश्नोत्तर इसप्रकार हैं देवी - हे माता जगत में सर्वश्रेष्ठ रत्न कौन-सा है ? माता - सम्यग्दर्शन रत्न जगत में सर्वश्रेष्ठ है। देवी - हे माता ! जगत में किसका जन्म सफल है ? माता - जो आत्मा की साधना करे, उसी का जन्म सफल है। देवी - जगत में बहरा कौन है ? माता - जो जिनवचन नहीं सुनता। देवी - हे माता! जगत में कौन-सी स्त्री उत्तम है। माता - जो तीर्थंकर पुत्र को जन्म दे। RPFF PER क
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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