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________________ पर से कुछ भी संबंध नहीं पूर्ण स्वाधीन है। बाह्य निमित्त - वकील की वाक्चतुराई से अदालत में मुकदता चलता है, तो उसमें परद्रव्य निमित्त वकील एवं उसकी इच्छा शक्ति उस कार्य के अनुकूल होती है; पर वह परद्रव्य होने से कार्य के निष्पन्न होने में कुछ नहीं करता। अन्तरंग निमित्त - उसी समय अपराधी का आयुकर्म का शेष होना मृत्युदण्ड से बचने में अन्तरंग निमित्त कारण है; परन्तु यह द्रव्यकर्म का उदय भी परद्रव्य है। अत: अकर्ता ही है। लाभ - ज्ञान में ऐसा निर्णय एवं श्रद्धा होने से निमित्तों पर होनेवाले राग-द्वेष कम हो जाते हैं। फिर भी किसी को मोह-राग-द्वेष होते दिखाई दें तो समझना चाहिए कि - या तो उसकी श्रद्धा में भूल है या चारित्र मोह से होने वाली जीव की स्वयं की कमजोरी है वस्तुतः इसके यथार्थज्ञान व श्रद्धान का सुफल तो निराकुल सुख ही है। परिशिष्ट -१ (उपादान कारण के ही प्रकारान्तर भेद) अन्वयकारण : सम्यग्दृष्टि को साधक दशा में चारित्रगण के परिणमन में मिश्र (शुद्ध व शुभ की मिली जुली ) दशा होती है, उसमें शुद्ध दशा उपादान कारण है और उसके साथ अविनाभाव रूप से रहनेवाला शुभभाव निमित्त होने से इसे अन्वयकारण कहा जाता है। उदाहरणार्थ - १. महाव्रत धारण किए बिना सकलचारित्र कभी नहीं होता, इसलिए उन महाव्रतों को अन्वयरूप कारण जानकर कारण में कार्य का उपचार करके शुभभाव को भी चारित्र कहा है। २. अरहंतादिक का श्रद्धान होने से तो सम्यक्त्व हो अथवा न भी हो, परन्तु अरहंतादिक का श्रद्धान हुए बिना तत्त्वार्थश्रद्धारूप सम्यक्त्व कभी भी नहीं होता; इसलिए अरहंतादिक के श्रद्धान को अन्यवयरूप कारण जानकर कारण में कार्य का उपचार करके अरहंतादि के श्रद्धान को सम्यक्त्व कहा है। उत्पादन कारण : द्रव्यों की ध्रुवता तथा पूर्व पर्याय का व्यय उत्पादन कारण है। यदि ऐसा न माना जाये तो ध्रौव्य व व्यय से पृथक् मात्र उत्पाद संभव ही नहीं होगा अथवा असत् का उत्पाद होने का प्रसंग आयेगा। पूर्व पर्यायों के व्यय को असत् वर्तमान पर्याय का उत्पादन कारण कहना व्यवहार है, निश्चय से तो वर्तमान पर्याय स्वयं ही कारण व स्वयं ही कार्य है।
SR No.008365
Book TitlePar se Kuch bhi Sambandh Nahi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2001
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size235 KB
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