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यही सोचकर मुझे इस संकलन का नाम भी 'जिन खोजा तिनि पाईयाँ' रखना ही उचित लगा, जो उन्हें तो पसंद आया ही, पाठकों को भी पसंद आयेगा और पाठक श्रीमती शान्तिदेवी के इस सारभूत संकलन से लाभान्वित भी होंगे।
जिन्होंने पाँचों कथा-कृतियाँ एवं तीनों कहानियाँ पढ़ीं हैं, उनकी प्रस्तुत सारसंक्षेप कृति के पढ़ने से पाँचों पुस्तकों की पुनरावृत्ति हो जायेगी और जिन्हें समयाभाव के कारण पाँचों पुस्तकों को पढ़ने का समय नहीं मिला, उन्हें पाँचों पुस्तकों का सार इस कृति के माध्यम से मिल जायेगा।
संभवतः इसे पढ़कर सभी कृतियों को पूरा पढ़ने की जिज्ञासा भी जग जाय । तथा इन कृतियों के पढ़ने से उनका मुक्ति पथ का पथिक बनने भाग्य जग जाय; क्योंकि इन ज्ञान और वैराग्यवर्द्धक कृतियों में भी जिनेन्द्र की दिव्यध्वनि का और निर्ग्रन्थ पूज्य आचार्यों के ग्रन्थों का सार ही है। ___ इन सभी दृष्टिकोणों से इस कृति का प्रकाशन उपयोगी रहेगा - ऐसा मेरा विश्वास है। मुझे आशा है कि मेरे प्रिय पाठक अन्य कृतियों की भाँति इससे भी लाभान्वित होंगे।
- पण्डित रतनचन्द भारिल्ल