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________________ | गये। लोग कहने लगे कि 'ये क्या देवदूत नारद है ? या कोई गंधर्वदेव है ? अथवा किन्नरदेव है? || क्योंकि ऐसी वीणा बजाना किसी दूसरे साधारण कलाकार को कहाँ से आ सकती? इसप्रकार जब सभा में वसुदेव ने विजय पताका ग्रहण की तब चारों ओर से साधु-साधु का शब्द | गूंज उठे। वे स्वाभाविक अनुराग से भरी गंधर्वसेना ने सभा में ही वसुदेव के गले में वरमाला डालकर | उनका पति के रूप में वरण कर लिया तथा चारुदत्त सेठ ने सन्तुष्ट होकर अपनी कन्या गंधर्वसेना का विधिवत विवाह वसुदेव से कर दिया। वसुदेव के संगीत गुरु सुग्रीव और यशोग्रीव ने भी अपनी-अपनी कन्यायें वसुदेव को प्रदान कर प्रसन्नता का अनुभव किया। पुण्यवान और परोपकारी पुरुष जहाँ भी जाते हैं, वहीं उन्हें समस्त प्रकार से अनुकूलता प्राप्त होती है। दो हाथ यदि उन्हें धक्का देते हैं, गिराते हैं तो हजार हाथ उन्हें झेलने को तैयार मिलते हैं। यह लोक प्रचलित उक्ति कुमार वसुदेव के जीवन के उतार-चढ़ाव के द्वारा साकार होती देखी जा सकती है। अतः हमें सदैव धर्म की शरण में रहकर सदैव स्व-पर कल्याण में ही अपना जीवन समर्पित करना चाहिए। धर्म में श्रद्धा रखनवाले गुणवान एवं पुण्य पुरुष कुमार वसुदेव की विचित्र घटनाओं से हमें यह बात सीखने को मिलती है। वसुदेव जहाँ भी पहुंचे, उन्हें सब जगह आदर सम्मान तो मिला ही, लोगों ने अपनी समस्याको जोदाकार हैउन्हेंसेभजनमाजमावड़सी हीन्यापार जाने के पहले यदि वह कुछ ऐसे काम कर ले, जिनसे स्व-पर कल्याण हो सके तथा अपने स्वरूप को जान ले, पहचान ले, उसी में जम जाये, रम जाये, समा जाये तो उसका जीवन धन्य हो जाता है, सार्थक हो जाता है, सफल हो जाता है। - सुखी Ev 04 FEBF
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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