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________________ an F85 || में है तथा सुमुख और वनमाला के प्रेम-प्रसंग और रतिक्रीड़ा का भी वर्णन अत्यन्त सटीक है, जिसे | साहित्यिक दृष्टि से संयोग श्रृंगार का चरमोत्कर्ष कहा जा सकता है। वनमाला मूलतः वीरक वैश्य की पत्नी थी। नगर का निरीक्षण करते हुए राजा सुमुख की दृष्टि | उस पर पड़ गई और वह उस पर मोहित हो गया। वनमाला भी राजा को देखकर आकर्षित हो गई। वनमाला पर अत्यधिक आसक्ति के कारण वह उसे पाने के लिए तड़पने लगा। उसका मुख मण्डल मलिन और विषादयुक्त हो गया। स्वामी को उदास देख उसके सुमति नामक मंत्री ने एकान्त में राजा से उदासी का कारण पूछा और सच्चे सेवक के नाते सभी प्रकार के मनोरथ को यथाशक्ति पूर्ण करने का विश्वास दिलाया। बुद्धिमान और विश्वासपात्र मंत्री के वचनों से आश्वस्त होकर राजा सुमुख ने वीरक वैश्य की रूपवती पत्नी वनमाला के आकर्षण और उस पर आसक्त होने की अपनी सारी व्यथा-कथा कह दी। ___ मंत्री आदि राजकर्मियों का काम अपने स्वामी की तात्कालिक समस्याओं का समाधान एवं निराकरण करना ही प्रमुख होता है, अतः सुमति मंत्री ने अपने अधीनस्थ सेवकों द्वारा वनमाला को राजा सुमुख से मिलवाने की व्यवस्था कर दी । वनमाला भी राजा के रूप-लावण्य पर मोहित हो गई थी इसकारण मंत्री की यह योजना सहज सुलभ हो गई। वनमाला के चले जाने से उसका पति वीरक वैश्य पहले तो पत्नी के वियोग में परेशान हुआ; परन्तु बाद में पत्नी की पर-पुरुष के प्रति आसक्ति से संसार की विचित्रता का विचार आने पर वह विरक्त हो गया। यद्यपि ऐसे कार्यों से इस जन्म में अपयश और आगामी जन्मों में कुगति की प्राप्ति होती है - शास्त्रानुसार ऐसा जानते हुए भी कामपीड़ित-मोहान्ध मानव उसके दुष्परिणाम की परवाह नहीं करते। यह सान्यान्य नीति है। F5 E F Gr or FEBRFE EF
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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