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________________ ७. राजीमती (राजुल) राजमती राजुल भोजवंशी राजा उग्रसेन की पुत्री थी। उनका विवाह सौरीपुर के राजा समुद्रविजय के पुत्र नेमिकुमार के साथ होना निश्चित हुआ था; जब नेमिकुमार राजुल को ब्याहने के लिए ठाट-बाट से बारात लेकर आये; जिसमें बहुत अधिक संख्या में बाराती आये थे। बारात के व्यवस्थित शुभागमन एवं स्वागत की जोरदार तैयारी की गई थी। श्रावण का महीना और सायंकाल गोधूलि का समय होने से जंगल से पशुओं की वापसी की पूरी-पूरी संभावना थी। अत: नगर के सभी मार्गों के दोनों ओर बांस-वल्लियाँ लगाकर बारात आने के मार्ग को निर्विघ्न बनाया गया था। जंगल से आते पशुओं को अपने-अपने घर पहुँचने का कोई मार्ग नहीं था और गायों के छोटे-छोटे बछड़े दिनभर से घर पर बंधे माँ की प्रतीक्षा में रंभा रहे थे। गायें दूध से भरे थनों को भूखे बछड़ों को पिलाने की आकुलता में व्याकुल होने से रंभा रही थीं। उनकी इसतरह करुण आवाजें सुनकर रथ में बैठे श्री नेमिकुमार ने सहज ही पूछ लिया - यह गायों-बछड़ों के रंभाने की चारों ओर से दुःख भरी आवाज क्यों आ रही है ? एक ने कहा - "आपकी बारात ही इनके दुःख का कारण है। जब तक इतनी बड़ी बारात राजा उग्रसेन के दरवाजे तक नहीं पहुँच जाती, तबतक ये इसीतरह रंभाते चीखते-चिल्लाते रहेंगे; क्योंकि सब मार्गों को सब ओर से अवरुद्ध कर दिया गया है।" बस, फिर क्या था करुणानिधान तद्भव मोक्षगामी तीर्थंकर पद के धारक नेमिकुमार का माथा ठनका। उन्होंने सोचा - "अरे ! यह जगत इतना स्वार्थी है, अपने क्षणिक सुखाभास के लिए स्वभावत: दीन-हीन दुःखी प्राणियों को इसतरह दुःखी करता है। धिक्कार है ऐसे सांसारिक सुख को, बारम्बार धिक्कार है ऐसे गृहस्थ जीवन को, मेरे निमित्त से एक भी प्राणी को किसी भी प्रकार से किंचित् भी पीड़ा या बाधा नहीं होनी चाहिए। उन्होंने अपने रथ के सारथी को आज्ञा दी, रथ को वापिस मोड़ दो, अब मेरी शादी नहीं होगी। आत्मकल्याण के योग्य यह अवसर इस तरह के राग-रंग में, विषय-वासना के कीचड़ में गंदा करने के लिए FFFEE SE
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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