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________________ ६. महासती द्रौपदी द्रौपदी माकुन्दी नगरी के राजा द्रुपद की पुत्री थी। जिसका अन्तर्बाह्या व्यक्तित्व अनेक कलाओं से अलंकृत एवं सर्वांग सुन्दर था। राजा द्रुपद ने यह घोषणा करा दी कि जो गाण्डीव नामक धनुष को गोल करेगा, मोड़ देगा एवं चन्द्रक को वेधेगा वही द्रौपदी का वर होगा। इस घोषणा को सुनकर कर्ण, दुर्योधन आदि अनेक राजा वहाँ आए, पर वे अपने लक्ष्य में सफल नहीं हुए। उसीसमय पाण्डव बारह वर्ष का अज्ञातवास व्यतीत करते हुए उस स्वयंवर सभा में पहुँच गये। अर्जुन ने उस लक्ष्य को बेध दिया। उसीसमय द्रौपदी ने आकर वर की इच्छा से अर्जुन की ग्रीवा में वरमाला डाल दी। द्रौपदी के पाँच पति होने का कथन विकृति मात्र है। ___ यह विकृति फैलने का कारण यह बना कि- अर्जुन द्वारा गाण्डीव चक्र को बेधने पर द्रौपदी ने उन्हें अपना वर स्वीकार करके उनके गले में वरमाला डाली तो संयोग से वह वरमाला टूट गई और हवा के झोंके से माला के पुष्प पास में खड़े हुए पाँचों पाण्डवों के शरीर पर जा पड़े। किसी विवेकहीन चपल मनुष्य ने मजाक में यह जोर-जोर से कहना शुरू कर दिया कि द्रौपदी ने पाँचों राजकुमारों को वरा है; जबकि वस्तुतः द्रौपदी ने अर्जुन को ही अपने पति के रूप में चुना था। अर्जुन के ज्येष्ठ भ्राता युधिष्ठिर और भीम द्रौपदी को बहू जैसा मानते थे तथा अर्जुन के छोटे भ्राता नकुल और सहदेव द्रौपदी भाभी को माता के समान पूज्य मानते थे। द्रौपदी भी युधिष्ठिर एवं भीम को अपने श्वसुर पाण्डु के समान सम्मान देती थी तथा दोनों नकुल और सहदेव को पुत्रवत् मानती थी। वस्तुत: द्रौपदी पतिपरायण महासती नारी थी। अर्जुनादि पाँचों पाण्डव बारह वर्ष का अज्ञातवास करते हुए राजा विराट की विराट नगरी में पहुँचे। विराट | की रानी का नाम सुदर्शना था। एक दिन चूलिका नगरी का राजकुमार कीचक अपनी बहिन सुदर्शना से मिलने के लिए विराटनगर आया। वहाँ उसने द्रौपदी को देखा और वह उस पर मोहित हो गया। वह वहाँ FREE+
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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