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________________ १२६७ no 4 to 5 1 5 ह रि वं श क था २६ देवकी, सत्यभामा, रुक्मणी और जाम्बवती के पूर्वभव तीर्थंकर नेमिनाथ की दिव्यध्वनि द्वारा धर्मकथा होने के बाद प्रश्नोत्तर काल में सर्वप्रथम श्रीकृष्ण की | माता देवकी ने हाथ जोड़कर नेमिनाथ जिनेन्द्र को प्रणाम करके विनयपूर्वक पूछा - हे भगवन् ! आज दो मुनियों के युगल मेरे भवन में तीन बार आहार के निमित्त आये और तीन बार आहार ग्रहण किया। हे प्रभो! | जब मुनियों की भोजन की बेला एक है और वे २४ घंटे में एक बार ही आहार लेते हैं तो फिर इन मुनियों ने एक ही घर में एक ही दिन तीन बार प्रवेश क्यों किया ? संभावना यह भी हो सकती है कि वे तीन मुनियों के युगल पृथक्-पृथक् हों और अत्यन्त सदृश रूप होने के कारण भ्रान्तिवश मैं उन्हें पहचान नहीं सकी हूँ; परन्तु इतना अवश्य है कि उन सबके प्रति मेरे मन में पुत्रों | के समान स्नेह उत्पन्न हुआ था । देवकी के ऐसा कहने पर भगवान की ओर से दिव्यध्वनि द्वारा समाधान आया - हे देवकी ! ये छहों मुनि तेरे ही पुत्र हैं और श्रीकृष्ण को जन्म देने से पहले तूने इन्हें तीन युगलों के रूप में उत्पन्न किया था | तथा बलदेव ने कंस से इनकी रक्षा की थी। इनका लालन-पोषण भद्रिलपुर में सुदृष्टि सेठ के यहाँ अलका | सेठानी के गोद में हुआ है। धर्मश्रवण कर ये सबके सब एक साथ मेरी शिष्यता को प्राप्त हो गये । अब ये | इसी भव में कर्मों का नाश करके सिद्ध होंगे। तेरा इन सब में जो स्नेह हुआ था, वह तेरे पुत्र होने से हुआ धा था। ts to 4g tsp s5 m तत्पश्चात् कृष्ण की पटरानी सत्यभामा ने भगवान नेमिनाथ को प्रणाम कर अपने पूर्वभव पूछे ! उत्तर | में भगवान नेमिप्रभु की दिव्यध्वनि में आया - वैसे तो यह जीव अनादि से अपने को भूलकर चौरासी लाख श्नों का मा न २६
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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