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________________ और अनावृष्टि स्वयं युद्ध के लिए आगे आये। पूरे दिन दोनों पक्षों में घमासान युद्ध होता रहा । दोनों पक्षों | | के बहादुर योद्धाओं ने सम्पूर्ण समर्पण के साथ अपने अस्त्रों-शस्त्रों के प्रहारों से वीरता का परिचय दिया। | अन्ततोगत्वा सूर्यास्त होते-होते जरासंध की सेना हारकर निराश एवं विषादयुक्त हो अपने निवास पर चली गई और यादवों की सेना शत्रु को हराकर अत्यधिक हर्षित होती हुई अपने निवास पर आ गई। || दूसरे दिन मध्यान्ह में जरासन्ध और श्रीकृष्ण युद्ध के लिए तैयार हो अपनी-अपनी सेनाओं के साथ बाहर निकले। जरासन्ध ने सोचा - “सेना पर प्रहार करने के बजाय श्रीकृष्ण, नेमिकुमार, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीमसेन जैसे महावीर योद्धाओं को ही अपना निशाना बनाया जाये, सेना का संहार करने से क्या लाभ?" यह सोचकर जरासन्ध ने अपने सारथी को आदेश दिया कि - 'तू मेरा रथ यादवों की ओर ले चल! सारथी ने रथ आगे बढ़ाया और जरासन्ध लगातार बाणों की वर्षा से यादवों को आच्छादित करने लगा। जरासन्ध के सैकड़ों पुत्र भी यादवों के ही साथ यथासंभव रण करने लगे। युद्ध अपनी पराकाष्ठा पर था। जरासन्ध सीधे श्रीकृष्ण के साथ युद्ध करने लगा। दोनों के बीच भयंकर युद्ध होने लगा। जरासन्ध जो भी बाण छोड़ता श्रीकृष्ण उसका काट कर देते। जैसे जरासंध ने आग्नेयबाण छोड़ा तो श्रीकृष्ण ने वर्षाबाण से उसे बुझा दिया। इसतरह जब जरासन्ध के सब प्रयास व्यर्थ हो गये तो उसने अपना धनुष तो पृथ्वी पर फेंक दिया और हजार यक्षों द्वारा रक्षित चक्ररत्न का चिन्तवन किया। चिन्तवन करते ही सूर्य के समान दैदीप्यमान चक्ररत्न हाथ में आ गया। जरासन्ध ने वह चक्ररत्न श्रीकृष्ण के ऊपर फेंका। उसे फीका करने के लिए श्रीकृष्ण पक्ष के सभी योद्धाओं ने अपने-अपने चक्र छोड़े। श्रीकृष्ण शक्ति और गदा लेकर, बलदेव हल व मूसल लेकर, भीम गदा लेकर, अर्जुन अस्त्र लेकर, अनावृष्टि परिध लेकर, और युधिष्ठिर नागशक्ति लेकर आगे आये। समुद्रविजय भी महाअस्त्र छोड़ने लगे; किन्तु नेमिकुमार श्रीकृष्ण के साथ उस चक्ररत्न के सामने खड़े रहे। वह चक्ररत्न धीरे-धीरे मित्रवत् आया और भगवान नेमिनाथ एवं श्रीकृष्ण की प्रदक्षिणा देकर श्रीकृष्ण के दाहिने हाथ में आ गया। उसीसमय आकाश में दुन्दुभि बजने लगी, पुष्पवृष्टि होने लगी और 'यह नौवा ॥ २३
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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