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________________ on 65 गोपिका यशोदा माँ के उदर से जन्मी और देवकी की गोद में पली-बढ़ी श्रीकृष्ण की बहिन यद्यपि सर्वांग सुन्दर थी, परन्तु जन्म के समय देवकी के प्रसूति गृह में जाकर कंस ने उसकी नाक दबाकर चपटी कर दी थी, इस कारण उसके मन में हीन भावना ने घर कर लिया। एक बार बलदेव के पुत्रों ने आकर उसे नमस्कार किया और जाते समय अपने अल्हड़ स्वभाव से उसे 'चपटी' नाक वाली कह कर चिढ़ा भी दिया। यह निन्द्य वचन सुनकर वह लजित होती हुई उस स्त्री पर्याय से ही विरक्त हो गई। उसने नगर में विद्यमान सुव्रता नामक गणनी की शरण प्राप्तकर उनके साथ अवधिज्ञान के धनी व्रतधर मुनिराज के पास जाकर पूछा - "मैंने पूर्व में ऐसा क्या पाप किया था, जिससे मुझे यह कुरूप प्राप्त हुआ?" ___उत्तर में मुनिराज ने कहा - "पूर्वभव में तू सुराष्ट्र देश में उत्तम रूपवान पुरुष था। उस पुरुषपर्याय में तू विषयजन्य सुखों में अत्यन्त लीन था । एकबार एक मुनि के ऊपर तूने अपनी गाड़ी चढ़ा दी। इससे उनकी नाक चपटी हो गई। उन्होंने धैर्य रखा, वे आकुल-व्याकुल नहीं हुए, मुनिराज के जीव का घात नहीं हुआ। इसकारण तेरा जीव नरक में तो नहीं गया, किन्तु उनके शरीर का कुछ घात हुआ था, इसकारण तेरा मुख विकृत हुआ है।" संसार में जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। इसप्रकार गुरु के वचन सुन वह यशोदा गोपिका सुव्रत गणनी के साथ चली आई और आर्यिका के व्रत ले लिए। उस नवदीक्षिता आर्यिका को देखकर ऐसा लगता था मानो यह साक्षात् सरस्वती अथवा रति तपस्या कर रही है। व्रत, तप, संयम आदि || एवं प्रतिदिन भायी जानेवाली अनित्यादि बारह भावनाओं से वह विशुद्धि को प्राप्त हुई थी। सदा आत्मसाधना ॥२३॥ SER 5 FREE Eater
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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