SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ____ तत्पश्चात् वह माता को दोनों भुजाओं में उठाकर आकाश में ले जाकर बोला - ‘समस्त यादव राजा सुने ! मैं श्रीकृष्ण की प्रिया रुक्मणी को हरकर ले जा रहा हूँ। शक्ति हो तो उसकी रक्षा करो।' - इसप्रकार कहकर तथा शंख फूंककर रुक्मणी और उदधिकुमारी को तो नारदजी के पास बिठा दिया और युद्ध करने को तत्पर हो गया। घमासान युद्ध हुआ । प्रद्युम्न प्रत्येक लड़ाई में सफल होता गया । अन्त में दोनों पितापुत्र बड़ी भुजाओं से युद्ध करने को उद्यत हुए तब रुक्मणी के द्वारा प्रेषित होकर नारद ने शीघ्र ही आकर पिता-पुत्र का सम्बन्ध बतलाकर दोनों को युद्ध करने से रोका। श्रीकृष्ण होनहार 'वीर' और विद्याधर पुत्र को देखकर परम हर्ष को प्राप्त हुए। पुत्र को पाकर रुक्मणी और जाम्बवती ने खूब उत्सव कराया। तदनन्तर प्रद्युम्न अन्य स्त्रियों को अपने अतिशय रूप-लावण्य से लजा देनेवाली उदधिकुमारी आदि कन्याओं के साथ विवाहकर मंगल को प्राप्त हुए। शम्बकुमार और सुभानुकुमार राजा मधु का भाई कैटभ जो अच्युत स्वर्ग में देव हुआ था। वहाँ से चय कर श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बवती से शम्बकुमार या शम्भूकुमार हुआ और उसी समय सत्यभामा के भी सूर्य के समान दैदीप्यमान सुभानुकुमार हुआ। इधर प्रद्युम्न की प्राप्ति से रुक्मणी और शम्ब की प्राप्ति से जाम्बवती हर्षित हुई। उधर भानु और सुभानु की प्राप्ति से सत्यभामा भी अत्यधिक हर्षित हुई। श्रीकृष्ण की अन्य स्त्रियों से भी अनेक पुत्र उत्पन्न हुए, जो यादवों के हृदयों को आनन्द देनेवाले तथा सत्य, पराक्रम और यश से अत्यधिक सुशोभित थे। सैंकड़ों कुमारों से सेवित शम्ब समस्त क्रीड़ाओं में सुभानु को दबा देता था और उसे जीतकर सातिशय क्रीड़ा करता था। रुक्मणी के भाई रुक्मि के एक वैदर्भी नामक कन्या थी। रुक्मणी ने उसे प्रद्युम्न के लिए माँगा, परन्तु रुक्मि के पूर्व विरोध के कारण प्रद्युम्न के लिए वह कन्या नहीं दी गई। यह सुन शम्ब और प्रद्युम्न - दोनों भील के वेष में आये और रुक्मि को पराजित कर बलपूर्वक उस कन्या को हरकर ले आये और प्रद्युम्न ने उससे विवाह कर माँ रुक्मिणी की भावना को पूरा कर दिया। EFFEEF
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy