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________________ २१८ || मुनि के पास जाकर दीक्षित हो गया, मुनि दीक्षा ले ली। कुटुम्बीजनों के आग्रह पर छोटे भाई जिनदत्त | ने उससे विवाह तो कर लिया, किन्तु दुर्गन्ध के कारण उसने भी उसे छोड़ दिया । ह अ. क्र. वं था इस घटना चाण्डाल कन्या ने अपनी भूल का प्रायश्चित्त कर बहुत आत्मनिन्दा की। उसने एक दिन उपवास किया और क्षान्ता नामक आर्यिका के साथ अनेक आर्यिकाओं को भक्तिभाव से आहारदान दिया । क्षान्ता आर्यिका के साथ दो आर्यिकाएँ परम रूपवती कठिन तप करने वाली थीं, उन्हें देख दुर्गन्ध सुकुमारिका ने क्षान्ता आर्यिका से पूछा- ये दो रूपवती आर्यिकाएँ इतना कठिन तप किस कारण कर रही हैं ? क्षान्ता आर्यिका ने बताया कि ये सुकुमारिकायें पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग के इन्द्र की विमला और सुप्रभा | नामक देवियाँ थीं। एक दिन ये नन्दीश्वर पर्वत की यात्रा में जिनपूजा के लिए आयीं थीं कि संसार से विरक्त हो चित्त में इसप्रकार विचारने लगीं कि यदि हम मनुष्य भव को प्राप्त हों तो स्त्री पर्याय छेदक महातप करेगी । इसप्रकार संकल्प के साथ वे देवियाँ स्वर्ग से च्युत हुईं और अयोध्या नगरी के राजा श्रीषेण की हरिषेणा और श्रीषेणा पुत्री हुईं। ये दोनों रूपवती कन्याएँ जब यौवन को प्राप्त हुईं और इनका स्वयंवर रचा जाने लगा | तो इन्हें अपने पूर्वभव के संकल्प का स्मरण हो आया, जिससे ये बन्धुजनों को छोड़कर तत्काल तप करने लगीं । क्षान्ता आर्यिका से उन दोनों रूपवती आर्यिकाओं की कहानी सुनकर सुकुमारिका भी विरक्त हो गई और संसार के दुःखों से भयभीत हो उन्हीं के पास दीक्षित हो गई । एक दिन उसी गाँव की गणिका वसन्तसेना वन विहार के लिए आई। क्रीड़ा करने में उद्यत उस गणिका | को देख आर्यिका सुकुमारिका ने खोटे परिणामों से युक्त हो यह निदान किया कि अन्य जन्म में मुझे भी ऐसा | सौभाग्य प्राप्त हो । आयु के अन्त में मरकर वह आरण- अच्युत युगल में अपने पूर्वभव के पति सोमभूति देव | की पचपन पल्य की आयुवाली देवी हुई। सोमदत्त आदि तीनों भाइयों के जीव स्वर्ग से च्युत हो पाण्डु राजा 512 145 15 40 5 10 पा भ व २२
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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