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________________ एक ने आध्यात्मिक उत्कर्ष का मानदण्ड स्थापित किया और दूसरे ने गोवंश वृद्धि, भौतिक समृद्धि और | लौकिक लीलाओं का विस्तार किया। एक ने निर्वृत्ति का मार्ग दिखाया तो दूसरे ने प्रवृत्ति का पथ प्रशस्त किया । एक ने स्वयं अतीन्द्रिय आनन्द को प्राप्त कर जगत को आत्मसाधना का पथ प्रशस्त किया तो दूसरा | जनमंगल में ही प्रवृत्त रहा। वैदिक धर्म में श्रीकृष्ण को प्रवृत्ति के माध्यम से निर्वृत्ति का समर्थक सिद्ध किया गया है। यद्यपि यहाँ व्यवहारतः श्रीकृष्ण प्रवृत्तिमार्गी दिखाई पड़ते हैं, तथापि मूलत: वे भी निवृत्तिमार्गी ही हैं, प्रवृत्ति इनका साधन अवश्य रही है, पर साध्य तो सदा निवृत्ति ही रही। जैन पुराणों में श्रीकृष्ण को भावी तीर्थंकर के रूप में प्रतिपादित किया है। वर्तमान में इनकी गणना ६३ शलाका महापुरुषों में होती है। ___ कंस को जब यह ज्ञात हो गया कि मेरी मौत का कारण जीवित है और अज्ञातवास में रहकर मेरा सबसे बड़ा शत्रु कहीं पल-पुस रहा है। बल-वृद्धि को प्राप्त हो रहा है तो उसने अपनी उपकृत देवियों को कृष्ण का पता लगाने तथा उसे मार डालने की आज्ञा दे दी। एक देवी भयंकर पक्षी का रूप धारणकर आयी और चोंच द्वारा प्रहार कर बालक कृष्ण को मारने का प्रयत्न करने लगी; परन्तु बालक कृष्ण ने उसकी चोंच पकड़कर इतनी जोर से दबाई कि वह भयभीत हो भाग गई। दूसरी देवी भूतनी का रूप रखकर कुपूतना बन गई और वह कृष्ण को अपने विष से भरे स्तनपान कराने लगी। कृष्ण ने उसके हाव-भाव से उसकी खोटी भावना पहचान ली और उसके स्तन का अग्रभाग इतने जोर से चूसा कि वह पीड़ा से बैचेन होकर चीखने-चिल्लाने लगी। एक दिन कृष्ण के अधिक उपद्रव करने के कारण यशोदा ने कृष्ण का पैर रस्सी से कस कर बांध दिया। उसी दिन शत्रु की दो देवियाँ वृक्ष का रूप रखकर उन्हें पीड़ा पहुँचाने लगी; परन्तु श्रीकृष्ण ने उस बंधन की दशा में भी उन दोनों को मार भगाया।
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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