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________________ २१२ | वर्ष तक सुखपूर्वक रहे । पश्चात् वे वहाँ से चलकर विराट नगर पहुँचे, वहाँ के राजा का नाम विराट था। राजा विराट की पत्नी का नाम सुदर्शना था। पाण्डव और द्रौपदी राजा विराट से सम्मानित हो, उनके आतिथ्य को स्वीकार कर कौरवों से छिपकर गुप्त रूप से वहाँ रहने लगे। रानी सुदर्शना के १०० भाई थे। उनमें एक कीचक नामका भाई था। जो स्वभाव से क्रूर था। रूपवान और शूरवीर होने से वह अभिमानी भी था। एक बार वह अपनी बहिन सुदर्शना को देखने विराट नगर आया। वहाँ उसने द्रौपदी को देखा। द्रौपदी का बाह्य व्यक्तित्व आकर्षक तो था ही, वह रूप-यौवन आदि सभी दृष्टियों से अत्यंत सुन्दर थी। यद्यपि कीचक मानी था, परन्तु वह उसे देखते ही उस पर मोहित हो गया, वह द्रौपदी को प्राप्त करने के लालच में हीन भावना से ग्रसित भी हो गया। वह कहीं भी जाता, द्रौपदी उसके चित्त से नहीं हटती। उसने द्रौपदी को अपनी ओर आकर्षित करने के नाना उपाय किये; किन्तु वह सफल नहीं हुआ। द्रौपदी सती नारी जो थी। वह तो उसे तुच्छ और दीन-हीन ही समझती थी। वह उसकी खोटी नीयत को समझ गई थी, अत: उसने उसे ऐसी कुछ भी कुचेष्टा करने से स्पष्ट मना किया; किन्तु वह बेशर्म बनकर कामुक कु-चेष्टायें करता रहा। तब द्रौपदी ने उससे बचने के लिए नया उपाय सोचा और उसने उधर तो शैलन्ध्री के वेष में उससे एकान्त में मिलने की योजना बनाई और इधर अपने जेठ भीमसेन से उसकी नीच हरकतों की शिकायत करके सब स्थितियों से अवगत कराकर उसे मारने की अपनी योजना समझा दी और अपनी जगह भीमसेन को शैलन्ध्री के कपड़े पहना कर (शैलन्ध्री के वेष में) अपने पूर्व निर्धारित स्थान पर यथासमय पहुँचा दिया। स्वयं भी वहीं आस-पास कहीं छिप गई। उधर कामवासना से पीड़ित कामुक कीचक भी वहाँ समय पर पहुँच गया। शैलेन्ध्री के वेष में भीमसेन ॥२१ 45 865
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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