SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इस राजा मधु और चन्द्राभा की घटना से पाठक यह सबक सीख सकते हैं, यह प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं कि कदाचित् अज्ञान और मोहावेश में कामान्ध होकर किसी ने मधु एवं चन्द्राभा जैसा भयंकर पाप भी कर लिया हो तो संयम-साधना और प्रायश्चित्त लेकर मुनिव्रतों तथा घोर तपश्चरण द्वारा उसको नष्ट भी किया जा सकता है। ये पौराणिक कथायें पाप प्रवृत्ति त्यागने और धर्ममार्ग में लगाने हेतु ही हमारे पूज्य आचार्यों ने लिखी हैं। अतः इन्हें बारम्बार आद्योपान्त पढ़े और आत्मकल्याण करें। राजा मधु का जीव ही स्वर्ग से आकर भरतक्षेत्र में नारायण श्रीकृष्ण की रुक्मणी रानी के उदर से प्रद्युम्न नामक पुत्र हुआ और कैटभ का जीव भी स्वर्ग से आकर श्रीकृष्ण की पट्टानी जाम्बवती के उदर से शम्ब (शम्भू) नाम का पुत्र हुआ। प्रद्युम्न और शम्ब दोनों भाई अत्यन्त धीर-वीर चरमशरीरी तद्भव मोक्षगामी थे। दोनों में परस्पर अत्यधिक प्रेम था। ___ वटकपुर का राजा चन्द्राभा का पूर्व पति वीरसेन अपनी पत्नी के विरहजन्य संताप से इष्टवियोगज आर्तध्यान से मरण कर चिरकाल तक संसार चक्र में उलझा हुआ भटकता रहा। अन्त में मनुष्य पर्याय को प्राप्त कर वह आत्मज्ञान से रहित तापसी हो गया । तप के प्रभाव से देवगति तो मिली, परन्तु अज्ञानमय तप के कारण वह अग्नि के समान प्रचण्ड धूमकेतु नामक देव हुआ। उसे कुवधिज्ञान से अपने पूर्वभव में राजा मधु द्वारा चन्द्राभा के अपहरण की घटना सम्बन्धी बैर का ज्ञान हो गया। इसकारण उसने राजा मधु के ही जीव प्रद्युम्न को माता से वियुक्त कर दिया। आचार्य कहते हैं कि विवेकी जीवों को ऐसे कोई काम नहीं करना चाहिए जो दूसरों को क्रोध उत्पन्न करें और बैर-विरोध का कारण बने । बैर बहुत बुरा भाव है। जब क्रोध किसी के प्रति लम्बे काल तक बना रहता है तो वही क्रोध बैर के रूप में भव-भव में दुःख का कारण बनता है। बैर की व्याख्या करते ||१९ हुए कहा गया है कि "बैर क्रोध का ही अचार या मुरब्बा है।" REFE
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy