SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २. श्रीकृष्ण सामान्य रूप से बालक-बालिकाओं का जन्म ९ मास में ही होता है, परन्तु श्रीकृष्ण का जन्म कंस की बहिन देवकी की कूख से कंस के कारागार में सात माह में ही हो गया। जिसकी खबर कंस के पहले बलदेव और वसुदेव ने ज्ञात कर ली थी। बलदेव यह जानते थे कि कंस ने ज्योतिषी के बताये अनुसार | देवकी की सभी संतानों को जन्मते ही मारने की व्यवस्था कर रखी है; किन्तु कंस ९ माह के भरोसे में कृष्ण के जन्म से अनजान रह गया। यह भी एक सुखद संयोग और भली होनहार ही थी। यदि श्रीकृष्ण का जन्म सामान्य बालकों की भांति पूरे ९ माह में ही होता तो कंस ने उन्हें जन्म लेते ही मरवा डालने की जो पूर्व नियोजित योजना बना रखी थी, उसमें वह सफल हो जाता। कंस से कृष्ण को बचाने के लिए जन्मते ही तत्काल उन्हें गुप्त रूप से गोप सुनन्द एवं गोपिका यशोदा के यहाँ भेज दिया गया था। बलदेव और वसुदेव ने बालक कृष्ण को उन्हें यह कहकर सौंपा कि 'तुम इसे अपना पुत्र समझ कर इसका पालन-पोषण करना तथा इस बात को गुप्त ही रखना। ध्यान रहे, इसका भेद किसी को भी ज्ञात न हो अन्यथा कंस द्वारा इसे मार दिया जायेगा।' उसी दिन जन्मी यशोदा की पुत्री को देवकी के पास लाकर सुला दिया गया था। इसतरह श्रीकृष्ण को कंस से बचाया जा सका। कंस की योजना देवकी के सभी पुत्रों को मार डालने की थी; क्योंकि भविष्यवक्ता के द्वारा कंस को यह ज्ञात हो गया था कि उसकी मृत्यु का कारण देवकी का ही कोई पुत्र बनेगा; किन्तु वसुदेव और बलदेव की बुद्धिमानी से वह अपने उद्देश्य में सफल न हो सका। ____ कंस अपनी मृत्यु के भय से 'न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी' की खोटी नीति के अनुसार अपनी सगी | बहिन देवकी के पुत्रों को अर्थात् अपने भानजों को जन्म से ही मारना चाहता था; परन्तु होनहार को कोई टाल नहीं सकता, हुआ वही जो होना था। श्रीकृष्ण का शरीर शंख, चक्र आदि उत्तमोत्तम लक्षणों से युक्त था। वे लम्बी उम्र लेकर जन्मे थे और उनके द्वारा लोकमंगल के बहुत से कार्य होने थे। कंस उन्हें कैसे मार सकता था?
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy