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________________ राजपुत्री ने एक सफेद साड़ी का परिग्रह रख आर्यिका दीक्षा ली। | पूर्णभद्र और मणिभद्र नामक दोनों भाई चिरकाल तक श्रावक के उत्तम एवं श्रेष्ठ व्रत का पालन कर | अन्त में सल्लेखना द्वारा पुनः सौधर्म स्वर्ग में उत्तम देव हुए। पश्चात् स्वर्ग से च्युत होकर वे अग्निभूति-वायुभूति के जीव अयोध्या नगरी के राजा हेमनाभ की धरावती रानी के मधु और और कैटभ नामक पुत्र हुए। तदनन्तर किसी दिन राजगद्दी पर मधु का और युवराज पद पर कैटभ का अभिषेक कर राजा हेमनाथ ने जिनदीक्षा धारण कर ली। मधु और कैटभ पृथ्वीतल पर अद्वितीय वीर हुए। वे दोनों सूर्य और चन्द्रमा के समान अद्भुत तेज के धारक थे। राजा मधु एवं चन्द्रप्रभा का कथाप्रसंग सौधर्म स्वर्ग से चयकर वे अग्निभूति एवं वायुभूति के जीव पुन: अयोध्यानगरी के राजा हेमनाभ की धरावती रानी से मधु एवं कैटभ नामक पुत्र हुए। राजा हेमनाभ मधु को राजा एवं कैटभ को युवराज का पदभार देकर स्वयं साधु हो गये। दोनों पुत्र सूर्य और चन्द्रमा के समान अद्भुत तेज के धारक वीर पुरुष थे। राजा मधु का अधीनस्थ राजा भीमक ही एकबार इनके विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार हो गया। उसे वश में करने के लिए दोनों भाई ससैन्य चलकर अपने दूसरे अधीनस्थ राजा वीरसेन की राज्यसीमा में पहुँचे। वहाँ के राजा वीरसेन ने इनका खूब आदर-सम्मान तो किया ही, अपना स्वामी समझ कर अन्त:पुर में ठहरने का स्थान भी दे दिया। राजा वीरसेन की चन्द्रिका के समान अत्यन्त रूपवती चन्द्राभा नाम की रानी थी। चन्द्राभा के मधुर भाषण से न्याय-नीति में निपुण राजा मधु का मन तो मोहित हो ही गया, पर आश्चर्य की बात तो यह है कि विवाहिता चन्द्राभा भी पति से विमुख हो पर पुरुष पर आकर्षित हो गई। उसका मन भी राजा मधु के रूप लावण्य और पौरुष पर मोहित हो गया।
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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