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________________ जब सुनन्द गोप और यशोदा ने कृष्ण के बाल्यकाल में ही ऐसी अद्भुतशक्ति देखी तो वे आश्चर्यचकित रह गये। एक दिन छटवी देवी ऐसे उपद्रवी बैल का रूप बनाकर आयी, जो पूरे नगर में भयंकर आवाज करता | हुआ यत्र-तत्र दिखाई देता था। कृष्ण ने उसकी गर्दन मरोड़कर दूर भगा दिया। सातवीं देवी ने पत्थर वर्षा कर कृष्ण को मारना चाहा; परन्तु कृष्ण उस वर्षा से रंचमात्र भी व्याकुल नहीं हुए; प्रत्युत उन्होंने घबराये हुए | गोकुलवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को सिर पर ले लिया। | जब श्रीकृष्ण की इस लोकोत्तर चर्चाओं का पता कानो-कान बलदेव को चला ते उन्होंने माता देवकी के सामने भी कृष्ण के समाचार कह सुनाये । कृष्ण के विषय में यह सब सुनकर पुत्र को देखने के लिए देवकी ब्रज-गोकुल की ओर गईं। वहाँ गोवर्धन पर्वत की चोटी पर स्थित गोपालकों के मुख से गीत सुनकर एवं गोधन के साथ गोपों को वनखण्ड में देखकर देवकी परम संतोष को प्राप्त हुई। जो घास और पानी से सन्तुष्ट थी, जिनके थनों से बछड़े लगे हुए थे, गोपाल जिन्हें दुह रहे थे- ऐसी गोशालाओं में खड़ी सुन्दर गायों को देखकर माता देवकी रोमांचित हो गई। मन ही मन हर्षित नन्द गोप ने यशोदा के साथ जाकर अनेक लोगों के समूह सहित गौरवशालिनी देवकी को भक्तिपूर्वक नमस्कार किया। ___ तत्पश्चात् यशोदा ने आकर्षक व्यक्तित्व के धनी, वस्त्राभूषणों से सुसज्जित, मोरपंख की कलंगी लगाये अनेक बाल-गोपालों के साथ श्रीकृष्ण को लाकर माता देवकी को प्रणाम करने के लिए कहा । उत्तम गोप के वेष को धारण किए हुए कृष्ण माँ को प्रणाम करके बैठ गये। देवकी ने यशोदा से कहा - हे यशोदे ! तू सौभाग्यशालिनी है, जो ऐसे पुत्र का निरन्तर दर्शन करती है। तेरा तो वन में रहना भी प्रशंसनीय है। ऐसे पुत्र पर तो तीन लोक का राज्य भी न्योछावर कर दिया जाय तो भी कम है। उत्तर में गोपी यशोदा ने कहा - हे स्वामिन् ! आपने कृष्ण के विषय में जो कहा वह शत-प्रतिशत सत्य है। मुझे पूरी तरह संतोष और सुख देनेवाला यह आपका पुत्र आपके प्रिय आशीर्वाद से चिरंजीव रहे, यही मेरी हार्दिक कामना है। Tv 0 416 EME FOR ENE
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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