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________________ | Favo देवपूजा, वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय, धर्मोपदेश द्वारा नियमित स्वाध्याय, छह प्रकार का इन्द्रिय संयम एवं छह प्रकार का प्राणी संयम, अनशनादि छह बहिरंग तप और प्रायश्चित्त आदि छह अन्तरंग तप तथा श्रावक के षट् आवश्यक भी सम्मलित थे। अन्यथा ऐसा सातिशय पुण्य कहाँ से आता? जिसके फलस्वरूप उन्होंने जीवन में भयंकर कठिनाइयों को पार करते हुए एक से बढ़कर एक-अनेक सुन्दर गुणवान कन्याओं से विवाह किये तथा श्रीकृष्ण और बलदेव जैसे यशस्वी पुत्रों की प्राप्ति हुई। जिनके अग्रज समुद्रविजय जैसे राजा और नेमिनाथ जैसे तीर्थंकरों ने जिसके वंश को अलंकृत किया। तत्काल विवाहित वसुदेव की पत्नी रोहणी ने शयन करते हुए चार स्वप्न देखे थे। प्रथम स्वप्न में गर्जन करता हुआ विशाल हाथी, दूसरे स्वप्न में बड़ी-बड़ी लहरों वाला समुद्र, तृतीय स्वप्न में पूर्ण चन्द्रमा तथा चौथे स्वप्न में मुख में प्रवेश करता हुआ सफेद सिंह देखा। प्रात: रोहणी ने वे सभी स्वप्न पति से कहकर उनका फल पूछा - पति ने फल बताते हुए कहा - तुम्हारे शीघ्र ही ऐसा पुत्र होगा, जो धीर, वीर, कान्तिवान, जनप्रिय महाराजा होगा। स्वप्न के फलानुसार नौ माह सुख से बीतने पर रोहणी ने एक सर्वगुणसम्पन्न पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम 'राम' रखा गया। एक बार कुमार वसुदेव के हित में तत्पर समुद्रविजय आदि सभी भाई रोहणी के पिता राजा रुधिर के घर श्रीमण्डप में बैठे थे कि एक दिव्य विद्याधरी आकाश से उतरकर वहाँ आई और सबको अभिवादन कर सुखद आसन पर बैठ गई और उसने वसुदेव से निवेदन किया कि आपकी पूर्व पत्नी वेगवती और मेरी पुत्री बालचन्द्रा आपके चरणों में नतमस्तक हो आपका प्रियदर्शन करना चाहती है। कुमारी बालचन्द्रा आपके बिना जीवित नहीं रह सकती, अत: आप उससे विवाह कर उसके प्राणों की रक्षा करें। ___अग्रजों से अनुमति लेकर वसुदेव विद्याधरी के साथ गगन वल्लभपुर गये और समुद्रविजय आदि भाई शौर्यपुर चले गये । वसुदेव नववधू बालचन्द्रा और वेगवती के साथ कुछ दिन वहीं रहे । तत्पश्चात् उन ||११ 5_EF Mp 5 FEE
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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