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________________ गुणस्थान विवेचन ५, पृष्ठ २०५; गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १४, गोम्मटसार कर्मकाण्ड गाथा ८२० की टीका एवं भावदीपिका पृष्ठ २२६, २३४ ।) वृद्धिंगत सम्यग्चारित्र में उत्पन्न सूक्ष्मातिसूक्ष्म दोष को बतानेवाले गुणस्थान का नाम सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान है। इस दसवें से आगे के गुणस्थानों में चारित्र की अपेक्षा से दोषों की बात ही नहीं; क्योंकि उपशांत मोह आदि सर्व गुणस्थान सर्वथा वीतरागरूप ही हैं। सातवें गुणस्थान से लेकर आगे के गुणस्थानों में चारित्र संबंधी वृद्धि का स्वरूप कुछ विशिष्ट ही है; क्योंकि उनके बाह्य प्रवृत्ति में कुछ परिवर्तन दिखाई नहीं देता; तथापि अंतरंग में उत्तरोत्तर विशेषरूप से चारित्र बढ़ता ही जाता है। बढ़ते हुए चारित्र की तथा लोभ कषाय की अंतिम कड़ी का नाम सूक्ष्मसांपराय है। दसवें गुणस्थान के सूक्ष्मसांपरायरूप दोष को मात्र आगमप्रमाण से जान सकते हैं; दूसरा कुछ बाह्यक्रिया आदि उपाय नहीं है। २०८ काल अपेक्षा विचार - जघन्यकाल - यदि कोई महामुनीश्वर उपशमक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में कम से कम रहेंगे तो मात्र एक समय रह सकते हैं; वह भी मरण की अपेक्षा । जैसे - १. कोई महामुनिराज उपशांतमोह गुणस्थान से नीचे उतरते समय सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में एक समय रहें और तत्काल मनुष्य आयु का क्षय हो जाय तो मरण की अपेक्षा सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान का जघन्यकाल एक समय हो सकता है। २. उपशमक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान से ऊपर चढ़ते समय कोई मुनिराज सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में मात्र एक समय आरूढ़ हुए और तत्काल मनुष्य आयु का क्षय हो जाय तो भी सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान का जघन्य काल एक समय घटित हो सकता है। उत्कृष्ट काल - सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान का उत्कृष्ट काल यथायोग्य एक अंतर्मुहूर्त है । यदि उपशमक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानवर्ती मुनिराज अधिक से अधिक इस दसवें गुणस्थान में रहें तो यथायोग्य मात्र एक अंतर्मुहूर्त रह सकते हैं। सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान २०९ क्षपक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान का उत्कृष्ट काल तो यथायोग्य एक ही अंतर्मुहूर्त है। क्षपक का जघन्यकाल या मध्यमकाल होता ही नहीं । मध्यमकाल - उपशमक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान का दो समय, तीन, चार, पाँच आदि समयों से लेकर यथायोग्य एक अंतर्मुहूर्त काल के बीच का काल दसवें गुणस्थान का मध्यमकाल हो सकता है; वह भी मरण की अपेक्षा । गमनागमन की अपेक्षा विचार - गमन - १. उपशमक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानवर्ती महामुनिराज ऊपर की ओर उपशांतमोह गुणस्थान में ही गमन करते हैं। २. उपशमश्रेणी से उतरते समय सूक्ष्मसांपराय मुनिराज ही दसवें गुणस्थान से नीचे नववें अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में गमन करते हैं। ३. यदि उपशमक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानवर्ती मुनिराज का मरण हो जाय तो विग्रहगति के समय उनका चौथे गुणस्थान में ही गमन होता है। ४. क्षपक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानवर्ती महामुनिराज क्षीणमोह गुणस्थान में ही गमन करते हैं। ९५. प्रश्न : क्षपक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थानवर्ती मुनिराज उपशांत मोह गुणस्थान में गमन क्यों नहीं करते ? उत्तर : चारित्रमोहनीय कर्म का क्रमशः क्षय अर्थात् नाश करते-करते पूर्ण वीतरागता को अल्पकाल में प्राप्त करेंगे। अतः वे नियम से क्षीणमोह गुणस्थान में ही गमन करते हैं; ग्यारहवें उपशांतमोह गुणस्थान में नहीं । क्षपक श्रेणी के गुणस्थानों में उपशम श्रेणी का ११ वाँ गुणस्थान नहीं आता; क्योंकि क्षपक और उपशमक का मार्ग परस्पर नियम से भिन्न है। आगमन - १. उपशमक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में आगमन नीचे के उपशमक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान से ही होता है। २. श्रेणी से उतरते समय ऊपर के उपशांतमोह गुणस्थान से भी सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में आगमन होता है। ३. क्षपक सूक्ष्मसांपराय गुणस्थान में आगमन मात्र क्षपक अनिवृत्तिकरण गुणस्थान से होता है।
SR No.008350
Book TitleGunsthan Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size649 KB
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