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________________ ४४ छहढाला अन्वयार्थ :- ( आप में) आत्मा में (परद्रव्यनतें) परवस्तुओं से ( भिन्न) भिन्नत्व की (रुचि) श्रद्धा करना सो, (भला) निश्चय (सम्यक्त्व) सम्यग्दर्शन है; (आपरूप को ) आत्मा के स्वरूप को (परद्रव्यनतें भिन्न) परद्रव्यों से भिन्न (जानपनों) जानना (सो) वह (सम्यग्ज्ञान) निश्चय सम्यग्ज्ञान (कला) प्रकाश (है) है। (परद्रव्यनतैं भिन्न) परद्रव्यों से भिन्न ऐसे (आपरूप में) आत्मस्वरूप (थर) स्थिरतापूर्वक ( लीन रहे) लीन होना सो (सम्यक् चारित) निश्चय सम्यक्चारित्र (सोई) है। (अब) अब (व्यवहार मोक्षमग) व्यवहार- मोक्षमार्ग (सुनिये) सुनो कि जो व्यवहार मोक्षमार्ग (नियत को) निश्चय मोक्षमार्ग का (हेतु) निमित्तकारण ( होई) है। भावार्थ :- पर पदार्थों से त्रिकाल भिन्न ऐसे निज आत्मा का अटल विश्वास करना, उसे निश्चय सम्यग्दर्शन कहते हैं। आत्मा को परवस्तुओं से भिन्न जानना (ज्ञान करना) उसे निश्चय सम्यग्ज्ञान कहा जाता है तथा परद्रव्यों का आलम्बन छोड़कर आत्मस्वरूप में एकाग्रता से मग्न होना वह निश्चय सम्यक्चारित्र (यथार्थ आचरण) कहलाता है। अब आगे व्यवहार-मोक्षमार्ग का कथन करते हैं; क्योंकि जब निश्चय - मोक्षमार्ग हो, तब व्यवहार-मोक्षमार्ग निमित्तरूप में कैसे होता है, वह जानना चाहिये। व्यवहार सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन) का स्वरूप जीव अजीव तत्त्व अरु आस्रव, बन्ध रु संवर जानो । निर्जर मोक्ष कहे जिन तिनको, ज्यों का त्यों सरधानौ ।। 27 तीसरी ढाल है सोई समकित व्यवहारी, अब इन रूप बखानो । तिनको सुन सामान्य विशेषै, दिढ़ प्रतीत उर आनो ।। ३ ।। अन्वयार्थ :- (जिन) जिनेन्द्रदेव ने (जीव) जीव, (अजीव) अजीव, (आस्रव) आस्रव, (बन्ध) बन्ध, ( संवर) संवर, (निर्जर) निर्जरा, (अरु) और (मोक्ष) मोक्ष, (तत्त्व) ये सात तत्त्व (कहे) कहे हैं; (तिनको) उन सबकी (ज्यों का त्यों) यथावत् यथार्थरूप से (सरधानो) श्रद्धा करो। (सोई) इसप्रकार श्रद्धा करना, सो (समकित व्यवहारी) व्यवहार से सम्यग्दर्शन है। अब (इन रूप) इन सात तत्त्वों के रूप का (बखानो) वर्णन करते हैं; (तिनको) उन्हें (सामान्य विशेषै) संक्षेप से तथा विस्तार से (सुन) सुनकर (उर) मन में (दिढ़) अटल (प्रतीत) श्रद्धा (आनो) करो। भावार्थ:(१) निश्चय सम्यग्दर्शन के साथ व्यवहार सम्यग्दर्शन कैसे होता है, उसका यहाँ वर्णन है। जिसे निश्चय सम्यग्दर्शन न हो, उसे व्यवहार सम्यग्दर्शन भी नहीं हो सकता। निश्चयश्रद्धा सहित सात तत्त्वों की विकल्परागसहित श्रद्धा को व्यवहार सम्यग्दर्शन कहा जाता है। (२) तत्त्वार्थसूत्र में " तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्" कहा है, वह निश्चय सम्यग्दर्शन है। (देखो, मोक्षमार्ग प्रकाशक अध्याय ९, पृष्ठ ४७७ तथा पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, गाथा २२) । यहाँ जो सात तत्त्वों की श्रद्धा कही है, वह भेदरूप है - रागसहित है, इसलिये वह व्यवहार सम्यग्दर्शन है। निश्चय मोक्षमार्ग में कैसा निमित्त होता
SR No.008344
Book TitleChahdhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size326 KB
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