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________________ छहढाला दूसरी ढाल पद्धरि छन्द ( १५ मात्रा) संसार (चतुर्गति) में परिभ्रमण का कारण ऐसे मिथ्या दृग-ज्ञान-चर्णवश, भ्रमत भरत दुख जन्म-मर्ण । ता” इनको तजिये सुजान, सुन तिन संक्षेप कहूँ बखान ।।१।। करो। (४) अनादिकाल से संसार में परिभ्रमण, भवनत्रिक में उत्पन्न होना तथा स्वर्गों में दुःख का कारण बतलाओ। असुरकुमारों का गमन, सम्पूर्ण जीवराशि, गर्भनिवास का समय, यौवनावस्था, नरक की आयु, निगोदवास का समय, निगोदिया की इन्द्रियाँ, निगोदिया की आयु, निगोद में एक श्वास में जन्म-मरण तथा श्वास का परिमाण बतलाओ। (६) त्रस पर्याय की दुर्लभता १-२-३-४-५ इन्द्रिय जीव तथा शीत से लोहे का गोला गल जाने को दृष्टांत द्वारा समझाओ। (७) बुरे परिणामों से प्राप्त होने योग्य गति, ग्रन्थ रचयिता, जीव-कर्म सम्बन्ध, जीवों की इच्छित तथा अनिच्छित वस्तु, नमस्कृत वस्तु, नरक की नदी, नरक में जानेवाले असुरकुमार, नारकी का शरीर, निगोदिया का शरीर, निगोद से निकलकर प्राप्त होनेवाली पर्यायें, नौ महीने से कम समय तक गर्भ में रहनेवाले, मिथ्यात्वी वैमानिक की भविष्यकालीन पर्याय, माता-पिता रहित जीव, सर्वाधिक दुःख का स्थान और संक्लेश परिणाम सहित मृत्यु होने के कारण प्राप्त होने योग्य गति का नाम बतलाओ। पनी इच्छानुसार किसी शब्द, चरण अथवा छद का अर्थ या भावार्थ कहो। पहली ढाल का सारांश समूझाओ, गतियों के दुःखों पर एक निख लिखोअद्भश्चवावीर जिना अविचकोर चित हारी। चिदानन्द अबुधि अब उछरयो भव तप नाशन हारी ।।टेक।। सिद्धारथ नृप कुल नभ मण्डल, खण्डन भ्रम-तम भारी। परमानन्द जलधि विस्तारन, पाप ताप छय कारी ॥१।। उदित निरन्तर त्रिभुवन अन्तर, कीरत किरन पसारी। दोष मलंक कलंक अखकि, मोह राहु निरवारी ।।२।। कर्मावरण पयोध अरोधित, बोधित शिवमगचारी। गणधरादि मुनि उड्गन सेवत, नित पूनम तिथि धारी।।३।। अखिल अलोकाकाश उलंघन, जासु ज्ञान उजयारी। 'दौलत' तनसा कुमुदिनिमोदन, ज्यों चरम जगतारी ।।४।। (८) अन्वयार्थ :- [यह जीव] (मिथ्या दृग-ज्ञान-चर्णवश) मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र के वश होकर (ऐसे) इसप्रकार (जन्म-मरण) जन्म और मरण के (दुख) दुःखों को (भरत) भोगता हुआ [चारों गतियों में] (भ्रमत) भटकता फिरता है। (तात) इसलिये (इनको) इन तीनों को (सुजान) भलीभाँति जानकर (तजिये) छोड़ देना चाहिए। [इसलिये] इन तीनों का (संक्षेप) संक्षेप से (कहूँ बखान) वर्णन करता हूँ, उसे (सुन) सुनो। 16
SR No.008344
Book TitleChahdhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganlal Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Karma
File Size326 KB
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