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________________ अष्टपाहुड आगे सूई के दृष्टान्त का दार्टान्त कहते हैं - पुरिसो विजोससुत्तोण विणांसइ सोगओ विसंसारे। सच्चेदण पच्चक्खंणासदितं सो अदिस्समाणो वि।।४।। पुरुषोऽपि यः ससूत्रः न विनश्यति स गतोऽपि संसारे। सच्चेतनप्रत्यक्षेण नाशयति तं स: अदृश्यमानोऽपि ।।४।। अर्थ - जैसे सूत्रसहित सूई नष्ट नहीं होती है वैसे ही जो पुरुष संसार में गत हो रहा है, अपना रूप अपने दृष्टिगोचर नहीं है तो भी वह सूत्रसहित हो (सूत्र का ज्ञाता हो) तो उसके आत्मा सत्तारूप चैतन्य चमत्कारमयी स्वसंवेदन से प्रत्यक्ष अनुभव में आता है, इसलिए गत नहीं है, नष्ट नहीं हुआ है, वह जिस संसार में गत है, उस संसार का नाश करता है। भावार्थ - यद्यपि आत्मा इन्द्रियगोचर नहीं है तो भी सूत्र के ज्ञाता के स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से अनुभवगोचर है, वह सूत्र का ज्ञाता संसार का नाश करता है, आप प्रकट होता है, इसलिए सूई का दृष्टान्त युक्त है ।।४।। आगे सूत्र में अर्थ क्या है, वह कहते हैं - सुत्तत्थं जिणभणियं जीवाजीवादिबहुविहं अत्थं । हेयाहेयं च तहा जो जाणइ सो हु सद्दिट्ठी ।।५।। सूत्रार्थं जिनभणितंजीवाजीवादिबहुविधमर्थम् । हेयाहेयं च तथा यो जानाति स हि सद्वृष्टिः ।।५।। अर्थ – सूत्र का अर्थ जिन सर्वज्ञ देव ने कहा है और सूत्र का अर्थ जीव-अजीव आदि बहुत प्रकार है तथा हेय अर्थात् त्यागने योग्य पुद्गलादिक और अहेय अर्थात् त्यागने योग्य नहीं इसप्रकार आत्मा को जो जानता है वह प्रगट सम्यग्दृष्टि है। भावार्थ - सर्वज्ञभाषित सूत्र में जीवादिक नवपदार्थ और इनमें हेय उपादेय इसप्रकार बहुत प्रकार से व्याख्यान है, उसको जानता है वह श्रद्धावान सम्यग्दृष्टि होता है ।।५।। आगे कहते हैं कि जिनभाषित सूत्र व्यवहार परमार्थरूप दो प्रकार है, उसको जानकर योगीश्वर शुद्धभाव करके सुख को पीते हैं - संसार में गत गृहीजन भी सूत्र के ज्ञायक पुरुष । निज आतमा के अनुभवन से भवोदधि से पार हों ।।४।। जिनसूत्र में जीवादि बहुविध द्रव्य तत्त्वारथ कहे। हैं हेय पर व अहेय निज जो जानते सद्वृष्टि वे ।।५।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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