SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 384
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४६ अष्टपाहुड वचनिकाकार की प्रशस्ति इसप्रकार श्रीकुन्दकुन्द आचार्यकृत गाथाबंध पाहुडग्रन्थ है इनमें ये पाहुड हैं इनकी यह देशभाषामय वचनिका लिखी है। छह पाहुड की तो टीका टिप्पण है। इनमें टीका तो श्रुतसागर कृत है और टिप्पण पहिले किसी और ने किया है। इनमें कई गाथा तथा अर्थ अन्यप्रकार हैं, मेरे विचार में आया उनका आश्रय भी लिया है और जैसा अर्थ मुझे प्रतिभासित हुआ वैसा लिखा है। लिंगपाहुड और शीलपाहुड इन दोनों पाहुड की टीका टिप्पण मिला नहीं इसलिए गाथा का अर्थ जैसा प्रतिभास में आया वैसा लिखा है । श्री 'श्रुतसागरकृत टीका षट्पाहुड की है, उसमें ग्रन्थान्तर की साक्षी आदि कथन बहुत हैं वह उस टीका की यह वचनिका नहीं है, गाथा का अर्थमात्र वचनिका कर भावार्थ में मेरी प्रतिभास में आया उनके अनुसार अर्थ लिखा है । प्राकृत व्याकरण आदि का ज्ञान मेरे में विशेष नहीं है इसलिए कहीं व्याकरण से तथा आगम से शब्द और अर्थ अपभ्रंश हुआ हो तो बुद्धिमान पंडि मूलग्रन्थ विचार कर शुद्ध करके पढ़ना, मुझे अल्पबुद्धि जानकर हँसी मत करना, क्षमा करना, सत्पुरुषों का स्वभाव उत्तम होता है, दोष देखकर क्षमा ही करते हैं । यहाँ कोई कहे - तुम्हारी बुद्धि अल्प है तो ऐसे महान ग्रन्थ की वचनिका क्यों की ? उसको ऐसे कहना कि इस काल में मेरे से भी मंदबुद्धि बहुत हैं उनके समझने के लिए की है। इसमें सम्यग्दर्शन को दृढ़ करने का प्रधानरूप से वर्णन है, इसलिए अल्पबुद्धि भी बाँचे पढ़ें अर्थ को धारण करें तो उनके जिनमत का श्रद्धान दृढ़ हो । यह प्रयोजन जानकर जैसा अर्थ प्रतिभास में आया वैसा लिखा है और जो बड़े बुद्धिमान हैं वे मूल ग्रन्थ को पढ़कर ही श्रद्धान दृढ़ करेंगे, मेरे कोई ख्याति लाभ पूजा का तो प्रयोजन है नहीं, धर्मानुराग से यह वचनिका लिखी है, इसलिए बुद्धिमानों के लिए क्षमा करने योग्य है। इस ग्रन्थ की गाथा की संख्या ऐसे है - प्रथम दर्शनपाहुड की गाथा ३६ । सूत्रपाहुड की गाथा २७ । चारित्रपाहुड की गाथा ४५ । बोधपाहुड की गाथा ६२ । भावपाहुड की गाथा १६५ । मोक्षपाहुड की गाथा १०६ । लिंगपाहुड की गाथा २२ । शीलपाहुड की गाथा ४० । ऐसे आठों पाहुड की गाथा संख्या ५०३ है ।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy