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________________ अथ मोक्षपाहुड (६) ॐ नम: सिद्धेभ्यः। अथ मोक्षपाहुड की वचनिका लिख्यते । प्रथम ही मंगल के लिये सिद्धों को नमस्कार करते हैं - (दोहा) अष्ट कर्म को नाश करि, शुद्ध अष्ट गुण पाय । भये सिद्ध निज ध्यानतें, नमूं मोक्षसुखदाय ।।१।। इसप्रकार मंगल के लिए सिद्धों को नमस्कार कर श्रीकुन्दकुन्द आचार्यकृत 'मोक्षपाहुड' ग्रंथ प्राकृत ग की देशभाषामय वचनिका लिखते हैं। प्रथम ही आचार्य मंगल के लिए परमात्मा को नमस्कार करते हैं - णाणमयं अप्पाणं उवलद्धं जेण झडियकम्मेण । चइऊण य परदव्वं णमो णमो तस्स देवस्स ।।१।। ज्ञानमय आत्मा उपलब्ध: येन क्षरितकर्मणा। त्यक्त्वा च परद्रव्यं नमो नमस्तस्मै देवाय ।।१।। अर्थ – आचार्य कहते हैं कि जिसने परद्रव्य को छोड़कर के द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म खिरा दिये हैं. ऐसे होकर निर्मल ज्ञानमयी आत्मा को प्राप्त कर लिया है इसप्रकार के देव को हमारा नमस्कार हो-नमस्कार हो। दो बार कहने में अतिप्रीतियुक्त भाव बताये हैं। भावार्थ - यह ‘मोक्षपाहुड' का प्रारंभ है। यहाँ जिनने समस्त परद्रव्य को छोड़कर कर्म का अभाव करके केवलज्ञानानंदस्वरूप मोक्षपद को प्राप्त कर लिया है, उस देव को मंगल के लिए परद्रव्य को परित्याग पाया ज्ञानमय निज आतमा। शत बार उनको हो नमन निष्कर्म जो परमातमा ।।१।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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