SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१५ भावपाहुड क्या कथा ? किं पुण गच्छइ मोहंणरसुरसुक्खाण अप्पसाराणं। जाणतो पस्संतो चिंतंतो मोक्ख मुणिधवलो ।।१३१।। किं पुन: गच्छति मोहं नरसुरसुखानां अल्पसाराणाम्। जानन् पश्यन् चिंतयन् मोक्षं मुनिधवलः ।।१३१।। अर्थ – सम्यग्दृष्टि जीव पूर्वोक्त प्रकार की ऋद्धि को भी नहीं चाहता है तो मुनिधवल अर्थात् मुनिप्रधान है वह अन्य जो मनुष्य देवों के सुख भोगादिक जिनमें अल्प सार है उनमें क्या मोह को प्राप्त हो ? कैसा है मुनिधवल ? मोक्ष को जानता है, उस ही की तरफ दृष्टि है, उस ही का चिन्तन करता है। भावार्थ - जो मुनिप्रधान हैं, उनकी भावना मोक्ष के सुखों में है। वे बड़ी-बड़ी देवविद्याधरों की फैलाई हुई विक्रिया ऋद्धि में भी लालसा नहीं करते हैं तो किंचित्मात्र विनाशीक जो मनुष्य, देवों के भोगादिक के सुख हैं, उनमें वांछा कैसे करे ? अर्थात् नहीं करे ।।१३१।। आगे उपदेश करते हैं कि जबतक जरा आदिक न आवें तबतक अपना हित कर लो - उत्थरह जा ण जरओ रोयण्णी जा ण डहइ देहउडिं। इन्दियबलंण वियलइ ताव तुमं कुणहि अप्पहिंय ।।१३२।। आक्रमते यावन्न जरा रोगाग्निर्यावन्न दहति देहकुटीम् । इन्द्रियबलं न विगलति तावत् त्वं कुरु आत्महितम् ।।१३२।। अर्थ – हे मुने ! जबतक तेरे जरा (बुढ़ापा) न आवे तथा जबतक रोगरूपी अग्नि तेरी देहरूपी कुटी को भस्म न करे और जबतक इन्द्रियों का बल न घटे तबतक अपना हित कर लो। भावार्थ - वृद्ध अवस्था में देह रोगों से जर्जरित हो जाता है, इन्द्रियाँ क्षीण हो जाती हैं तब असमर्थ होकर इस लोक के कार्य उठना-बैठना भी नहीं कर सकता है तब परलोकसंबंधी तपश्चरणादिक तथा ज्ञानाभ्यास और स्वरूप का अनुभवादि कार्य कैसे करे ? इसलिए यह उपदेश है कि जबतक सामर्थ्य है तबतक अपना हितरूप कार्य कर लो ।।१३२।। भवभ्रमण करते आजतक मन-वचन एवं काय से । दश प्राणों का भोजन किया निज पेट भरने के लिये ।।१३४।। इन प्राणियों के घात से योनी चौरासी लाख में। बस जन्मते मरते हुये, दुख सहे तूने आजतक ।।१३५।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy