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________________ २०६ अष्टपाहुड हैं, उनमें पौरुष प्रधान नहीं है, इसलिए उपदेश अपेक्षा वे गौण हैं, इसप्रकार ये शील और उत्तरगुण स्वभाव-विभाव परिणति के भेद से भेदरूप करके कहे हैं। शील की प्ररूपणा दो प्रकार की है - एक तो स्वद्रव्य-परद्रव्य के विभाग की अपेक्षा है और दूसरे स्त्री के संसर्ग की अपेक्षा है। परद्रव्य का संसर्ग, मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना से न करना । इनको आपस में गुणा करने से नौ भेद होते हैं। आहार, भय, मैथुन और परिग्रह ये चार संज्ञा हैं, इनसे परद्रव्य का संसर्ग होता है, उसका न होना, ऐसे नौ भेदों को चार संज्ञाओं से गुणा करने पर छत्तीस होते हैं। पाँच इन्द्रियों के निमित्त से विषयों का संसर्ग होता है, उनकी प्रवृत्ति के अभावरूप पाँच इन्द्रियों से छत्तीस को गुणा करने पर एक सौ अस्सी होते हैं। पृथ्वी, अप, तेज, वायु, प्रत्येक, साधारण ये तो एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तीनइन्द्रिय, चौइन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ऐसे दशभेदरूप जीवों का संसर्ग, इनकी हिंसारूप प्रवर्तने से परिणाम विभावरूप होते हैं। सो न करना, ऐसे एक सौ अस्सी भेदों को दस से गुणा करने पर अठारह सौ होते हैं। क्रोधादिक कषाय और असंयम परिणाम से परद्रव्यसंबंधी विभावपरिणाम होते हैं, उनके अभावरूप दसलक्षण धर्म है, उनसे गुणा करने से अठारह हजार होते हैं। ऐसे परद्रव्य के संसर्गरूप कुशील के अभावरूप शील के अठारह हजार भेद हैं। इनके पालने से परम ब्रह्मचर्य होता है, ब्रह्म (आत्मा) में प्रवर्तने और रमने को ‘ब्रह्मचर्य' कहते हैं। ___ स्त्री के संसर्ग की अपेक्षा इसप्रकार है - स्त्री दो प्रकार की है, अचेतन स्त्री काष्ठ, पाषाण, लेप (चित्राम) ये तीन, इनका मन और काय दो से संसर्ग होता है, यहाँ वचन नहीं है, इसलिए दो से गुणा करने पर छह होते हैं। कृत, कारित, अनुमोदना से गुणा करने पर अठारह होते हैं। पाँच इन्द्रियों से गुणा करने पर नब्बे होते हैं। द्रव्य-भावना से गुणा करने पर एक सौ अस्सी होते हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ - इन चार कषायों से गुणा करने पर सात सौ बीस होते हैं। चेतन स्त्री देवी, मनुष्यिणी, तिर्यंचणी ऐसे तीन, इन तीनों को मन, वचन, काय से गुणा करने पर नौ होते हैं। अचेतन : काष्ठ, पाषाण चित्राम ३ ह मन काय कृत कारित अनुमोदना ३ २ ह चेतन : देवी स्त्री मष्यिणी तिर्यचिणी ३ मन वचन काय ३ कृत। कारित इन्द्रियाँ अनुमोदना ५ ३ ह ५ इन्द्रियाँ द्रव्य क्रोध, मान, ५ भाव माया, लोभ ह ५ ह्न २ ह ४ = ७२० अनंतानुबंधी आहार अप्रत्याख्यानावरण क्रोध परिग्रह प्रत्याख्यानावरण मान, माया भय, मैथुन संज्वलन लोभ ह्न ४ ह ४ ह ४ = १७२८० १८००० द्रव्य भाव २ ह ह्न ह्र
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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