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________________ ११० अष्टपाहुड भावार्थ- जीवसमास चौदह कहे हैं - एकेन्द्रिय सूक्ष्म और बादर २. दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चोइन्द्रिय ऐसे विकलत्रय- ३, पंचेन्द्रिय असैनी सैनी २, ऐसे सात हुए, ये पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से चौदह हुए। इनमें चौदहवाँ 'सैनी पंचेन्द्रिय जीवस्थान' अरहंत के हैं। गाथा में सैनी का नाम न लिया और मनुष्यभव का नाम लिया सो मनुष्य सैनी ही होते हैं, असैनी नहीं होते हैं, इसलिए मनुष्य कहने से ‘सैनी' ही जानना चाहिए ।। ३६।। इसप्रकार जीवस्थानद्वारा 'स्थापना अरहंत' का वर्णन किया आगे द्रव्य की प्रधानता से अरहंत का निरूपण करते हैं - - जरवाहिदुक्खरहियं आहारणिहारवज्जियं विमलं । सिंहाण खेले सेओ णत्थि दुर्गुछा य दोसो य ।। ३७।। दस पाणा पज्जती अट्ठसहस्सा य लक्खणा भणिया । गोखीरसंखधवलं मंसं रुहिरं च सव्वंगे ।। ३८ ।। एरिसगुणेहिं सव्वं अइसयवंतं सुपरिमलामोयं । ओरालियं च कायं णायव्वं अरहपुरिसस्स ।। ३९।। जराव्याधिदुः खरहित: आहारनीहारवर्जितः विमलः । सिंहाण: खेल: स्वेदः नास्ति दुर्गन्ध च दोष: च ।। ३७ ।। दश प्राणाः पर्याप्तय: अष्टसहस्राणि च लक्षणानि भणितानि । गोक्षीरशंखधवलं मांसं रुधिरं च सर्वांगे ।। ३८ ।। ईदृशगुणैः सर्व: अतिशयवान् सुपरिमलामोदः । औदारिकश्च कायः अर्हत्पुरुषस्य ज्ञातव्यः ।। ३९।। अर्थ - अरहंत पुरुष के औदारिक काय इसप्रकार होता है, जो जरा, व्याधि और रोग संबंधी दु:ख उसमें नहीं है, आहार-नीहार से रहित है, विमल अर्थात् मलमूत्र रहित है; सिंहाण अर्थात् श्लेष्म, खेल अर्थात् थूक, पसेव और दुर्गन्ध अर्थात् जुगुप्सा, ग्लानि और दुर्गन्धादि दोष उसमें व्याधी बुढ़ापा श्वेद मल आहार अर नीहार से । थूक से दुर्गन्ध से मल-मूत्र से वे रहित हैं ।। ३७।। अठ सहस लक्षण सहित हैं अर रक्त है गोक्षीर सम । दश प्राण पर्याप्ती सहित सर्वांग सुन्दर देह है ।। ३८ ।। इस तरह अतिशयवान निर्मल गुणों से सयुक्त हैं। अर परम औदारिक श्री अरिहंत की नरदेह है ।। ३९ ।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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