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________________ १०८ संजम दंसण लेसा भविया सम्मत्त सण्णि आहारे ।। ३३ ।। गतौ इन्द्रिये च काये योगे वेदे कषाये ज्ञाने च । संयमे दर्शने लेश्यायां भव्यत्वे सम्यक्त्वे संज्ञिनि आहारे ।। ३३ ।। अर्थ – गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञी और आहार इसप्रकार चौदह मार्गणा होती हैं । अरहंत सयोगकेवली को तेरहवाँ गुणस्थान है, इसमें 'मार्गणा' लगाते हैं । गति चार में मनुष्यगति है, इन्द्रियजाति पाँच में पंचेन्द्रिय जाति है, काय में छह त्रसकाय है, योग पन्द्रह में योग-मनोयोग तो सत्य और अनुभय इसप्रकार दो और ये ही वचनयोग दो तथा काययोग औदारिक इसप्रकार पाँच योग हैं, जब समुद्घात करे तब औदारिकमिश्र और कार्माण ये दो मिलकर सात योग हैं। वेद तीनों का ही अभाव है; कषाय - पच्चीस सब ही प्रकार का अभाव है; ज्ञान आठ में केवलज्ञान है; संयम सात में एक यथाख्यात है; दर्शन चार में एक केवलदर्शन है; लेश्या छह में एक शुक्ल जो योगनिमित्त है; भव्य दो में एक भव्य है; सम्यक्त्व छह में क्षायिक सम्यक्त्व है; संज्ञी दो में संज्ञी है, वह द्रव्य से हैं भाव से क्षयोपशमरूप भावमन का अभाव है; आहारक अनाहारक दो में 'आहारक' है वह भी नोकर्मवर्गणा अपेक्षा है, किन्तु कवलाहार नहीं है और समुद्घात करे तो 'अनाहारक' भी है, इसप्रकार दोनों हैं। इसप्रकार मार्गणा अपेक्षा अरहंत का स्थापन जानना ।। ३३ ।। आगे पर्याप्ति द्वारा कहते हैं - - अष्टपाहुड आहारो य सरीरो इंदियमणआणपाणभासा य । पज्जत्तिगुणसमिद्धो उत्तमदेवो हवइ अरहो ।। ३४ ।। आहार: च शरीरं इन्द्रियमन आनप्राणभाषा: च । पर्याप्तिगुणसमृद्धः उत्तमदेवः भवति अर्हन् ।। ३४ ।। अर्थ - आहार, शरीर, इन्द्रिय, मन, आनप्राण अर्थात् श्वासोच्छ्वास और भाषा इसप्रकार छह पर्याप्ति हैं, इस पर्याप्ति गुण द्वारा समृद्ध अर्थात् युक्त उत्तम देव अरहंत हैं। - भावार्थ – पर्याप्ति का स्वरूप इसप्रकार है - जो जीव एक अन्य पर्याय को छोड़कर अन्य पर्याय में जावे तब विग्रह गति में तीन समय उत्कृष्ट बीच में रहे, पीछे सैनी पंचेन्द्रिय में उत्पन्न हो। वहाँ तीन जाति की वर्गणा का ग्रहण करे, आहारवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा, इसप्रकार आहार तन मन इन्द्रि श्वासोच्छ्वास भाषा छहों इन । पर्याप्तियों से सहित उत्तम देव ही अरहंत हैं ।। ३४ ।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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